कहानी के पात्र
वीणा - उम्र 22 साल. कहानी की पहली वर्णनकर्ता.
मीना - उम्र 23 साल. वीणा के ममेरे भाई बलराम की पत्नी. कहानी की दूसरी वर्णनकर्ता.
गिरिधर - उम्र 45 साल. वीणा के मामाजी और मीना के ससुर.
कौशल्या - उम्र 42 साल. वीणा की मामीजी और मीना की सास.
बलराम - उम्र 24 साल. वीणा के ममेरे भाई और मीना के पति.
किशन - उम्र 18 साल. वीणा का ममेरा भाई और मीना का देवर.
रामु - उम्र 26 साल. गिरिधर के घर का नौकर.
गुलाबी - उम्र 19 साल. रामु की पत्नी.
अमोल - उम्र 22 साल. मीना का छोटा भाई.
विश्वनाथ - उम्र 48 साल. मामाजी के मित्र.
नीतु - उम्र 18 साल. वीणा की छोटी बहन.
वीणा - उम्र 22 साल. कहानी की पहली वर्णनकर्ता.
मीना - उम्र 23 साल. वीणा के ममेरे भाई बलराम की पत्नी. कहानी की दूसरी वर्णनकर्ता.
गिरिधर - उम्र 45 साल. वीणा के मामाजी और मीना के ससुर.
कौशल्या - उम्र 42 साल. वीणा की मामीजी और मीना की सास.
बलराम - उम्र 24 साल. वीणा के ममेरे भाई और मीना के पति.
किशन - उम्र 18 साल. वीणा का ममेरा भाई और मीना का देवर.
रामु - उम्र 26 साल. गिरिधर के घर का नौकर.
गुलाबी - उम्र 19 साल. रामु की पत्नी.
अमोल - उम्र 22 साल. मीना का छोटा भाई.
विश्वनाथ - उम्र 48 साल. मामाजी के मित्र.
नीतु - उम्र 18 साल. वीणा की छोटी बहन.
प्रिय पाठकों, जैसा कि आप जानते हैं, मेरा नाम वीणा है. मैं गाँव मेहसाना, ज़िला रतनपुर की रहने वाली हूं. मेरी उम्र 22 साल है, फ़िगर 34/27/35, और रंग बहुत गोरा है. मेरी पिछली कहानी मे मैने सोनपुर के मेले मे मेरे मामा, मामी और उनकी बहु मीना के साथ अपने अनुभव के बारे मे लिखा था. आपने पढ़ा किस तरह मेले मे मेरी और मीना भाभी का गैंग-रेप हुआ. बाद मे मामाजी के दोस्त विश्वनाथजी के घर मे बलात्कारियों ने हम दोनो के साथ मेरी मामी की भी चुदाई की. और आपने यह भी पड़ा किस तरह मामाजी ने मुझे और अपनी बहु को भी चोदा.
कहानी के अंत मे मामा, मामी, और भाभी ने योजना बनायी कि किस तरह वे घर जाकर अपनी अवैध हवस का खेल जारी रखेंगे. मामी और भाभी अपने गाँव खानपुर के लिये हाज़िपुर स्टेशन पर उतर गये. मामाजी मुझे घर छोड़ने के लिये मेरे साथ आये.
अब आगे की कहानी...
मामाजी और मै शाम तक एक तांगे मे बैठकर गाँव मेहसाना पहुंचे. मामाजी के आवाज़ लगाते ही मेरे पिताजी, मेरी माँ, और मेरी छोटी बहन नीतु घर के बाहर आये. मामाजी ने अपने जीजा (मेरे पिताजी) और अपनी दीदी (मेरी माँ) के पाँव छुये.
"गिरिधर, कोई परेशानी तो नही हुई सोनपुर के मेले मे?" पिताजी ने मामाजी से पूछा.
"नही, जीजाजी." मामाजी मुझे आंख मारकर बोले, "परेशानी कैसी? बहुत मज़ा लिया वीणा बिटिया ने!"
सुनते ही नीतु बिफर पड़ी, "पिताजी! देखिये वीणा दीदी ने कितना मज़ा किया मेले मे! आप लोगों ने मुझे जाने ही नही दिया!"
पिताजी नीतु को बोले, "अरे तू कैसे जाती, बेटी? इतना बुखार था तुझे उस दिन!"
मामाजी बोले, "नीतु बिटिया, अगले साल जब सोनपुर मे मेला लगेगा हम तुझे ज़रूर ले जायेंगे!"
यूं ही बातें करते हुए हम अन्दर आ गये. रात के खाने तक हम सब सिर्फ़ मेले के बारे मे ही बातें करते रहे. मामाजी और मुझे बहुत कुछ बना-बना कर बोलना पड़ा क्योंकि हम लोगों ने मेला तो कम देखा था और बाकी सब कुकर्म ही ज़्यादा किये थे.
रात को खाने के बाद हम सोने चले गये. मामाजी को मेरे कमरे मे सोने को दिया गया. मैं उस रात नीतु के कमरे मे सोई.
नीतु काफ़ी रात तक मुझसे मेले के बारे मे पूछती रही फिर थक कर सो गयी.
उसके सोते ही मैं बिस्तर से उठी, धीरे से दरवाज़ा खोलकर बाहर आयी और अपने कमरे की तरफ़ गयी जहाँ मामाजी सोये हुए थे.
मैने दरवाज़ा खट्खटाया तो मामाजी ने खोला. "अरे वीणा बिटिया, तू यहाँ इतनी रात को?" उन्होने पूछा.
कमरे मे काफ़ी अंधेरा था. अटैचड बाथरूम की बत्ती जल रही थी जिससे थोड़ी रोशनी आ रही थी.
मैने अपने पीछे दरवाज़ा बंद किया और खाट पर जा बैठी.
"मामाजी, मुझे नींद नही आ रही है!" एक कामुक सी अंगड़ाई लेकर मैने कहा.
"तो मेरे कमरे मे क्यों आयी है?" आवाज़ नीची करके मामाजी ने पूछा.
"चुदवाने के लिये, और क्या?" मैने कहा, "आप कल चले जायेंगे. फिर न जाने मेरी किस्मत मे कब कोई लौड़ा होगा. इसलिये आज रात जी भर के आपसे चुदवाऊंगी."
"हश!! धीरे बोल, पागल लड़की!" मामाजी बोले, "यह विश्वनाथ का कोठा नही, तेरे माँ-बाप का घर है. दीदी और जीजाजी ने सुन लिया तो मुझे गोली मार देंगे!"
"मै कुछ नही जानती!" मैने हठ कर के कहा, "मुझे आपका लौड़ा चाहिये!"
मामाजी हंसे और बोले, "लौड़ा तो तु ऐसे मांग रही है जैसे कोई लॉलीपॉप हो!"
मामाजी मेरे सामने खड़े थे. मैने टटोलकर लुंगी की गांठ को खोल दी तो लुंगी ज़मीन पर गिर गयी. मैने मामाजी का काला लन्ड अपने हाथ से पकड़ा. उनका मोटा लन्ड पूरा खड़ा नही था पर ताव खा रहा था.
मैने कहा, "मामाजी, आपका लन्ड लॉलीपॉप से कुछ कम नही है. चूस के बहुत स्वाद आता है." बोलकर मैने उनका लन्ड अपने मुंह मे ले लिया और सुपाड़े पर जीभ चलाने लगी.
मामाजी को मज़ा आने लगा. वह दबी आवाज़ मे बोले, "आह! चूस बिटिया, अच्छे से चूस!"
मैं मन लगाकर मामाजी के लन्ड को चूसने लगी और उनके पेलड़ को उंगलियों से सहलाने लगी. जल्दी ही उनका लन्ड फूलकर कड़क हो गया. मामाजी मेरे सर को पकड़कर मेरे मुंह मे अपना लन्ड पेलने लगे.
कुछ देर बाद मामाजी ने मेरे मुंह से अपना लन्ड निकाल लिया और बोले, "चल लेट जा."
मैने खुश होकर अपनी साड़ी उतारनी चाही, तो मामाजी बोले, "कपड़े उतारने का समय नही है. बस लेट कर अपनी टांगें खोल. मैं जल्दी से तुझे चोद देता हूं."
"नंगे हुए बिना मुझे मज़ा नही आयेगा, मामाजी!" मैने आपत्ति जतायी.
"लड़की, अपने बाप के घर मे अपने मामा से चुदवा रही है यही कम है क्या?" मामाजी बोले, "इससे पहले कि किसी को भनक पड़ जाये, अपनी चूत मरा ले और निकल यहाँ से. मेरे घर जब आयेगी तब इत्मिनान से चोदूंगा तुझे."
मै अपनी साड़ी और पेटीकोट कमर तक उठाकर बिस्तर पर लेट गयी, और अपनी दोनो टांगें फैलाकर अपनी चूत मामाजी के आगे कर दी. मेरी चूत इतनी गरम हो गयी थी के उससे पानी चू रही थी.
कहानी के अंत मे मामा, मामी, और भाभी ने योजना बनायी कि किस तरह वे घर जाकर अपनी अवैध हवस का खेल जारी रखेंगे. मामी और भाभी अपने गाँव खानपुर के लिये हाज़िपुर स्टेशन पर उतर गये. मामाजी मुझे घर छोड़ने के लिये मेरे साथ आये.
अब आगे की कहानी...
मामाजी और मै शाम तक एक तांगे मे बैठकर गाँव मेहसाना पहुंचे. मामाजी के आवाज़ लगाते ही मेरे पिताजी, मेरी माँ, और मेरी छोटी बहन नीतु घर के बाहर आये. मामाजी ने अपने जीजा (मेरे पिताजी) और अपनी दीदी (मेरी माँ) के पाँव छुये.
"गिरिधर, कोई परेशानी तो नही हुई सोनपुर के मेले मे?" पिताजी ने मामाजी से पूछा.
"नही, जीजाजी." मामाजी मुझे आंख मारकर बोले, "परेशानी कैसी? बहुत मज़ा लिया वीणा बिटिया ने!"
सुनते ही नीतु बिफर पड़ी, "पिताजी! देखिये वीणा दीदी ने कितना मज़ा किया मेले मे! आप लोगों ने मुझे जाने ही नही दिया!"
पिताजी नीतु को बोले, "अरे तू कैसे जाती, बेटी? इतना बुखार था तुझे उस दिन!"
मामाजी बोले, "नीतु बिटिया, अगले साल जब सोनपुर मे मेला लगेगा हम तुझे ज़रूर ले जायेंगे!"
यूं ही बातें करते हुए हम अन्दर आ गये. रात के खाने तक हम सब सिर्फ़ मेले के बारे मे ही बातें करते रहे. मामाजी और मुझे बहुत कुछ बना-बना कर बोलना पड़ा क्योंकि हम लोगों ने मेला तो कम देखा था और बाकी सब कुकर्म ही ज़्यादा किये थे.
रात को खाने के बाद हम सोने चले गये. मामाजी को मेरे कमरे मे सोने को दिया गया. मैं उस रात नीतु के कमरे मे सोई.
नीतु काफ़ी रात तक मुझसे मेले के बारे मे पूछती रही फिर थक कर सो गयी.
उसके सोते ही मैं बिस्तर से उठी, धीरे से दरवाज़ा खोलकर बाहर आयी और अपने कमरे की तरफ़ गयी जहाँ मामाजी सोये हुए थे.
मैने दरवाज़ा खट्खटाया तो मामाजी ने खोला. "अरे वीणा बिटिया, तू यहाँ इतनी रात को?" उन्होने पूछा.
कमरे मे काफ़ी अंधेरा था. अटैचड बाथरूम की बत्ती जल रही थी जिससे थोड़ी रोशनी आ रही थी.
मैने अपने पीछे दरवाज़ा बंद किया और खाट पर जा बैठी.
"मामाजी, मुझे नींद नही आ रही है!" एक कामुक सी अंगड़ाई लेकर मैने कहा.
"तो मेरे कमरे मे क्यों आयी है?" आवाज़ नीची करके मामाजी ने पूछा.
"चुदवाने के लिये, और क्या?" मैने कहा, "आप कल चले जायेंगे. फिर न जाने मेरी किस्मत मे कब कोई लौड़ा होगा. इसलिये आज रात जी भर के आपसे चुदवाऊंगी."
"हश!! धीरे बोल, पागल लड़की!" मामाजी बोले, "यह विश्वनाथ का कोठा नही, तेरे माँ-बाप का घर है. दीदी और जीजाजी ने सुन लिया तो मुझे गोली मार देंगे!"
"मै कुछ नही जानती!" मैने हठ कर के कहा, "मुझे आपका लौड़ा चाहिये!"
मामाजी हंसे और बोले, "लौड़ा तो तु ऐसे मांग रही है जैसे कोई लॉलीपॉप हो!"
मामाजी मेरे सामने खड़े थे. मैने टटोलकर लुंगी की गांठ को खोल दी तो लुंगी ज़मीन पर गिर गयी. मैने मामाजी का काला लन्ड अपने हाथ से पकड़ा. उनका मोटा लन्ड पूरा खड़ा नही था पर ताव खा रहा था.
मैने कहा, "मामाजी, आपका लन्ड लॉलीपॉप से कुछ कम नही है. चूस के बहुत स्वाद आता है." बोलकर मैने उनका लन्ड अपने मुंह मे ले लिया और सुपाड़े पर जीभ चलाने लगी.
मामाजी को मज़ा आने लगा. वह दबी आवाज़ मे बोले, "आह! चूस बिटिया, अच्छे से चूस!"
मैं मन लगाकर मामाजी के लन्ड को चूसने लगी और उनके पेलड़ को उंगलियों से सहलाने लगी. जल्दी ही उनका लन्ड फूलकर कड़क हो गया. मामाजी मेरे सर को पकड़कर मेरे मुंह मे अपना लन्ड पेलने लगे.
कुछ देर बाद मामाजी ने मेरे मुंह से अपना लन्ड निकाल लिया और बोले, "चल लेट जा."
मैने खुश होकर अपनी साड़ी उतारनी चाही, तो मामाजी बोले, "कपड़े उतारने का समय नही है. बस लेट कर अपनी टांगें खोल. मैं जल्दी से तुझे चोद देता हूं."
"नंगे हुए बिना मुझे मज़ा नही आयेगा, मामाजी!" मैने आपत्ति जतायी.
"लड़की, अपने बाप के घर मे अपने मामा से चुदवा रही है यही कम है क्या?" मामाजी बोले, "इससे पहले कि किसी को भनक पड़ जाये, अपनी चूत मरा ले और निकल यहाँ से. मेरे घर जब आयेगी तब इत्मिनान से चोदूंगा तुझे."
मै अपनी साड़ी और पेटीकोट कमर तक उठाकर बिस्तर पर लेट गयी, और अपनी दोनो टांगें फैलाकर अपनी चूत मामाजी के आगे कर दी. मेरी चूत इतनी गरम हो गयी थी के उससे पानी चू रही थी.
मामाजी मेरे पैरों के बीच बैठे. अपने 8 इंच के लन्ड का फूला हुआ सुपाड़ा मेरी चूत के फांक मे रखा और एक जोरदार धक्का मारकर अपना लन्ड 3-4 इंच घुसा दिया. मैं अचानक के धक्के से चिहुक उठी.
"चुप, लड़की! मरवायेगी क्या?" मामाजी ने डांटकर कहा.
"थोड़ा बताकर घुसाइये ना!" मैने जवाब दिया.
मामाजी ने अब धीरे से दबाव देकर अपना पूरा लन्ड मेरी संकरी चूत मे घुसा दिया और मेरे ऊपर सवार हो गये. मैने मामाजी को बाहों मे भर लिया और उनके होठों का चुम्बन करने लगी. मेरे होठों को पीते हुए मामाजी अपनी कमर उठा उठाकर मुझे चोदने लगे.
हम दोनो की ही सांसें तेज चल रही थी पर हम कोई आवाज़ नही कर रहे थे. बस चुपचाप अंधेरे मे लेटे चुदाई किये जा रहे थे. "ठाप! ठाप! ठाप! ठाप!" अंधेरे मे बस यही आवाज़ आ रही थी.
मुझे पेलते पेलते मामाजी बोले, "वीणा, नीतु अब बड़ी हो गयी है, है ना?"
मैं मामाजी के ठापों का कमर उठा उठाकर जवाब दे रही थी. मैं बोली, "हाँ, इस साल 18 की होगी."
"उसके मम्मे अब मीसने लायक बड़े हो गये हैं. अमरूद जैसे."
"मामाजी, अब आपकी बुरी नज़र मेरी छोटी बहन पर भी पड़ गयी है!" मैने कहा.
"क्यों इसमे क्या बुराई है?" मामाजी ठाप लगाते हुए बोले. "जब बड़ी भांजी को चोद सकता हूं तो छोटी को क्यों नही चोद सकता?"
"तो बुला लाऊं उसे यहाँ? उसके बुर का भी उदघाटन कर दीजिये!" मैने कहा.
"हो सकता है उसके बुर का उदघाटन पहले ही हो चुका हो!" मामाजी बोले, "आजकल के लड़कियों का कुछ पता नही. अब तेरे को ही देख ना. शकल से तु चुदैल थोड़े ही लगती है. कभी मौका मिला तो फुर्सत से नीतु को चोदुंगा. तु उसे पटाने मे मेरी मदद करेगी ना?"
"हाँ मामाजी." मैने कहा. चूत मे मामाजी के मोटे लन्ड की ठोकर से मुझे इतना मज़ा आ रहा था कि मै कुछ भी मानने को राज़ी थी.
धीरे धीरे हमारी सांसें और तेज हो गयी और मामाजी के धक्के भी तेज हो गये. अब मेरे लिये अपनी मस्ती को दबाये रखना मुश्किल हो रहा था.
"ओह!! मामाजी! आह!! और जोर से मामाजी! आह!!" मैं दबी आवाज़ मे बोलने लगी.
मामाजी कमर चलाते हुए बोले, "चुप कर, साली! बाहर कोई सुन लेगा!"
पर मुझसे खुद पर काबू नही हो रहा था. माँ, बाप, और छोटी बहन से छुपकर चुदवाने मे अलग ही मज़ा आ रहा था. मैं बस झड़ने ही वाली थी. मामाजी को जोर से जकड़कर मैने कहा, "और जोर से मामाजी! हाय और जोर से! क्या मज़ा आ रहा है चूत मराने मे!! उम्म!! आह!! हाय मैं गयी! हाय मैं गयी, मामाजी!!"
मेरी आवाज़ इतनी ऊंची हो गयी कि दरवाज़े के बाहर कोई होता तो ज़रूर सुन लेता. मामाजी ने मेरे होठों को अपने होठों से दबाकर बंद कर दिया जिससे मैं कोई आवाज़ न निकाल सकूं. फिर जोरों की ठाप देते हुए वह मेरी चूत मे झड़ने लगे. हम दोनो के मुंह से सिर्फ़ "ऊंघ!! ऊंघ!! ऊंघ!!" की आवाज़ निकल रही थी.
पुरा झड़ने के बाद मामाजी मेरे ऊपर कुछ देर लेटे हांफ़ते रहे. मैं भी उनके नीचे लेटे अपनी चूत मे उनके गरम वीर्य के अहसास का मज़ा लेती रही.
शांत होने पर मामाजी उठे और उन्होने अपना ढीला लौड़ा मेरी चूत से निकाल लिया. मेरी चूत से उनका वीर्य बहकर निकलने लगा.
"चल उठ, छोकरी." मामाजी बोले. "आज बस इतनी ही चुदाई होगी. इससे पहले कोई आ जाये, मेरे कमरे से निकल."
एक बार झड़के मेरी भूख नही मिटी थी. मैं तो रात भर चुदवा सकती थी. पर हालात को देखते हुए मैं बिस्तर से उठी, अपनी साड़ी ठीक की और चुपके से मामाजी के कमरे से निकल आई. मामाजी ने मेरे पीछे दरवाज़ा बंद कर लिया.
मेरे जांघों पर मामाजी का वीर्य बहने लगा था. अपनी चूत को अपनी जांघों से दबाकर मैं किसी तरह नीतु के कमरे तक पहुंची. मैने धीरे से नीतु के कमरे का दरवाज़ा खोला और आकर बिस्तर पर उसके पास लेट गयी.
अंधेरे मे नीतु के हलके सांसों की आवाज़ आ रही थी. शायद वह पूरे समय सोती ही रही थी और उसे मेरे आने-जाने का कुछ पता नही चला था.
पर अचानक नीतु ने पूछा, "दीदी, तु कहां गयी थी?"
मेरा दिल धक! से धड़क उठा.
"अरे तु सोयी नही है? मैं...मैं कहीं नही गयी थी!" मैने हड़बड़ाकर जवाब दिया.
"झूठ मत बोल, दीदी! तु मामाजी के पास क्यों गयी थी?" नीतु ने पूछा.
"ओह! वह तो ऐसे ही!" मैने हंसने की कोशिश की और कहा, "हम मीना भाभी और मामीजी के बारे मे बात कर रहे थे."
"पता नही तुम लोग क्या बातें कर रहे थे, पर अजीब आवाज़ें आ रही थी अन्दर से." नीतु बोली.
"कमीनी, तु कान लगाकर सुन रही थी क्या?" मैने पूछा.
"और तुम लोग अंधेरे मे बैठ के क्यों बातें कर रहे थे?" नीतु ने उलटे पूछा.
"तु अन्दर देख भी रही थी, साली!" मुझे तो डर से पसीने आने लगे. "ठहर मैं माँ से तेरी शिकायत करती हूं."
"दीदी, मैं तेरी जगह होती तो माँ-पिताजी को शिकायत करने नही जाती." नीतु ने मुझे धमकाया.
"क्या मतलब है तेरा?"
"कुछ नही!" नीतु बोली. उसने एक बड़ी सी नकली जम्हाई ली और कहा, "बड़ी नींद आ रही है, दीदी. मैं तो चली सोने."
नीतु ने मेरे किसी सवाल का और जवाब नही दिया. मैने अंधेरे मे लेटे सोचती रही नीतु ने क्या देखा और सुना होगा, और न जाने कब मेरी आंख लग गई.
अगले दिन सुबह नाश्ते के बाद मामाजी हाज़िपुर लौटने वाले थे. मैने सोचा मीना भाभी न जाने क्या कर रही होगी. उनका हाल-चाल पूछने के लिये, और मामाजी के साथ अपनी कल रात की चुदाई के अनुभव को बताने के लिये, मैने भाभी को एक चिट्ठी लिखी.
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प्रिय मीना भाभी,
आशा है घर पे सब कुशल-मंगल है. बलराम भैया, किशन, और बाकी सब लोग कैसे हैं? घर का हाल-चाल बताना.
भाभी, कल रात मौका देखकर मैने मामाजी से एक बार चुदवा लिया. मुझे तो उनसे सारी रात चुदवाने का मन था, पर वही नही माने.
खैर, आज सुबह मामाजी हाज़िपुर के लिये रवाना हो रहे हैं. दोपहर तक घर पहुंच जायेंगे. यह चिट्ठी मैं उनके हाथों भिजवा रही हूँ.
चिट्ठी का जवाब जल्दी देना. सोनपुर से लौटते समय ट्रेन मे तुमने जो योजना बनायी थी वह सफ़ल हो रही है या नही, सब खोलकर लिखना. मामीजी को मेरा प्रणाम कहना.
तुम्हारी वीणा
"चुप, लड़की! मरवायेगी क्या?" मामाजी ने डांटकर कहा.
"थोड़ा बताकर घुसाइये ना!" मैने जवाब दिया.
मामाजी ने अब धीरे से दबाव देकर अपना पूरा लन्ड मेरी संकरी चूत मे घुसा दिया और मेरे ऊपर सवार हो गये. मैने मामाजी को बाहों मे भर लिया और उनके होठों का चुम्बन करने लगी. मेरे होठों को पीते हुए मामाजी अपनी कमर उठा उठाकर मुझे चोदने लगे.
हम दोनो की ही सांसें तेज चल रही थी पर हम कोई आवाज़ नही कर रहे थे. बस चुपचाप अंधेरे मे लेटे चुदाई किये जा रहे थे. "ठाप! ठाप! ठाप! ठाप!" अंधेरे मे बस यही आवाज़ आ रही थी.
मुझे पेलते पेलते मामाजी बोले, "वीणा, नीतु अब बड़ी हो गयी है, है ना?"
मैं मामाजी के ठापों का कमर उठा उठाकर जवाब दे रही थी. मैं बोली, "हाँ, इस साल 18 की होगी."
"उसके मम्मे अब मीसने लायक बड़े हो गये हैं. अमरूद जैसे."
"मामाजी, अब आपकी बुरी नज़र मेरी छोटी बहन पर भी पड़ गयी है!" मैने कहा.
"क्यों इसमे क्या बुराई है?" मामाजी ठाप लगाते हुए बोले. "जब बड़ी भांजी को चोद सकता हूं तो छोटी को क्यों नही चोद सकता?"
"तो बुला लाऊं उसे यहाँ? उसके बुर का भी उदघाटन कर दीजिये!" मैने कहा.
"हो सकता है उसके बुर का उदघाटन पहले ही हो चुका हो!" मामाजी बोले, "आजकल के लड़कियों का कुछ पता नही. अब तेरे को ही देख ना. शकल से तु चुदैल थोड़े ही लगती है. कभी मौका मिला तो फुर्सत से नीतु को चोदुंगा. तु उसे पटाने मे मेरी मदद करेगी ना?"
"हाँ मामाजी." मैने कहा. चूत मे मामाजी के मोटे लन्ड की ठोकर से मुझे इतना मज़ा आ रहा था कि मै कुछ भी मानने को राज़ी थी.
धीरे धीरे हमारी सांसें और तेज हो गयी और मामाजी के धक्के भी तेज हो गये. अब मेरे लिये अपनी मस्ती को दबाये रखना मुश्किल हो रहा था.
"ओह!! मामाजी! आह!! और जोर से मामाजी! आह!!" मैं दबी आवाज़ मे बोलने लगी.
मामाजी कमर चलाते हुए बोले, "चुप कर, साली! बाहर कोई सुन लेगा!"
पर मुझसे खुद पर काबू नही हो रहा था. माँ, बाप, और छोटी बहन से छुपकर चुदवाने मे अलग ही मज़ा आ रहा था. मैं बस झड़ने ही वाली थी. मामाजी को जोर से जकड़कर मैने कहा, "और जोर से मामाजी! हाय और जोर से! क्या मज़ा आ रहा है चूत मराने मे!! उम्म!! आह!! हाय मैं गयी! हाय मैं गयी, मामाजी!!"
मेरी आवाज़ इतनी ऊंची हो गयी कि दरवाज़े के बाहर कोई होता तो ज़रूर सुन लेता. मामाजी ने मेरे होठों को अपने होठों से दबाकर बंद कर दिया जिससे मैं कोई आवाज़ न निकाल सकूं. फिर जोरों की ठाप देते हुए वह मेरी चूत मे झड़ने लगे. हम दोनो के मुंह से सिर्फ़ "ऊंघ!! ऊंघ!! ऊंघ!!" की आवाज़ निकल रही थी.
पुरा झड़ने के बाद मामाजी मेरे ऊपर कुछ देर लेटे हांफ़ते रहे. मैं भी उनके नीचे लेटे अपनी चूत मे उनके गरम वीर्य के अहसास का मज़ा लेती रही.
शांत होने पर मामाजी उठे और उन्होने अपना ढीला लौड़ा मेरी चूत से निकाल लिया. मेरी चूत से उनका वीर्य बहकर निकलने लगा.
"चल उठ, छोकरी." मामाजी बोले. "आज बस इतनी ही चुदाई होगी. इससे पहले कोई आ जाये, मेरे कमरे से निकल."
एक बार झड़के मेरी भूख नही मिटी थी. मैं तो रात भर चुदवा सकती थी. पर हालात को देखते हुए मैं बिस्तर से उठी, अपनी साड़ी ठीक की और चुपके से मामाजी के कमरे से निकल आई. मामाजी ने मेरे पीछे दरवाज़ा बंद कर लिया.
मेरे जांघों पर मामाजी का वीर्य बहने लगा था. अपनी चूत को अपनी जांघों से दबाकर मैं किसी तरह नीतु के कमरे तक पहुंची. मैने धीरे से नीतु के कमरे का दरवाज़ा खोला और आकर बिस्तर पर उसके पास लेट गयी.
अंधेरे मे नीतु के हलके सांसों की आवाज़ आ रही थी. शायद वह पूरे समय सोती ही रही थी और उसे मेरे आने-जाने का कुछ पता नही चला था.
पर अचानक नीतु ने पूछा, "दीदी, तु कहां गयी थी?"
मेरा दिल धक! से धड़क उठा.
"अरे तु सोयी नही है? मैं...मैं कहीं नही गयी थी!" मैने हड़बड़ाकर जवाब दिया.
"झूठ मत बोल, दीदी! तु मामाजी के पास क्यों गयी थी?" नीतु ने पूछा.
"ओह! वह तो ऐसे ही!" मैने हंसने की कोशिश की और कहा, "हम मीना भाभी और मामीजी के बारे मे बात कर रहे थे."
"पता नही तुम लोग क्या बातें कर रहे थे, पर अजीब आवाज़ें आ रही थी अन्दर से." नीतु बोली.
"कमीनी, तु कान लगाकर सुन रही थी क्या?" मैने पूछा.
"और तुम लोग अंधेरे मे बैठ के क्यों बातें कर रहे थे?" नीतु ने उलटे पूछा.
"तु अन्दर देख भी रही थी, साली!" मुझे तो डर से पसीने आने लगे. "ठहर मैं माँ से तेरी शिकायत करती हूं."
"दीदी, मैं तेरी जगह होती तो माँ-पिताजी को शिकायत करने नही जाती." नीतु ने मुझे धमकाया.
"क्या मतलब है तेरा?"
"कुछ नही!" नीतु बोली. उसने एक बड़ी सी नकली जम्हाई ली और कहा, "बड़ी नींद आ रही है, दीदी. मैं तो चली सोने."
नीतु ने मेरे किसी सवाल का और जवाब नही दिया. मैने अंधेरे मे लेटे सोचती रही नीतु ने क्या देखा और सुना होगा, और न जाने कब मेरी आंख लग गई.
अगले दिन सुबह नाश्ते के बाद मामाजी हाज़िपुर लौटने वाले थे. मैने सोचा मीना भाभी न जाने क्या कर रही होगी. उनका हाल-चाल पूछने के लिये, और मामाजी के साथ अपनी कल रात की चुदाई के अनुभव को बताने के लिये, मैने भाभी को एक चिट्ठी लिखी.
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प्रिय मीना भाभी,
आशा है घर पे सब कुशल-मंगल है. बलराम भैया, किशन, और बाकी सब लोग कैसे हैं? घर का हाल-चाल बताना.
भाभी, कल रात मौका देखकर मैने मामाजी से एक बार चुदवा लिया. मुझे तो उनसे सारी रात चुदवाने का मन था, पर वही नही माने.
खैर, आज सुबह मामाजी हाज़िपुर के लिये रवाना हो रहे हैं. दोपहर तक घर पहुंच जायेंगे. यह चिट्ठी मैं उनके हाथों भिजवा रही हूँ.
चिट्ठी का जवाब जल्दी देना. सोनपुर से लौटते समय ट्रेन मे तुमने जो योजना बनायी थी वह सफ़ल हो रही है या नही, सब खोलकर लिखना. मामीजी को मेरा प्रणाम कहना.
तुम्हारी वीणा
अगले दिन दोपहर को मेरे नाम भाभी की एक चिट्ठी आयी. खानपुर से मेहसाना डाक आने मे एक दिन लगता है. यानी कि यह चिट्ठी भाभी ने हाज़िपुर पहुंचते ही लिखी थी. मैं चिट्ठी लेकर अपने कमरे मे भागी और पढ़ने लगी.
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मेरी प्यारी वीणा,
सासुमाँ और मैं सकुशल घर पहुंच गये हैं. घर पर सब ठीक है. तुम्हारे बलराम भैया के पाँव मे बहुत जोर की मोच आयी है. सारा दिन बिस्तर पर लेटे रहते हैं.
अब आती हूँ यहाँ घर के हाल-चाल पर.
तुम्हारी मामीजी और मैं हाज़िपुर स्टेशन से तांगा लेकर शाम तक गाँव पहुचे. पहुंचकर देखा तुम्हारे बलराम भैया अपने बिस्तर पर दायें पाँव मे मलहम-पट्टी किये पड़े हुए हैं. सेवा मे मेरा देवर किशन और हमारे नौकर रामु की जोरु गुलाबी बैठे हैं.
मुझे देखर मेरे पति देव का चेहरा खिल उठा. घर के सब लोग मौजूद थे नही तो वह तो मुझे वहीं गले लगा लेते. आखिर तुम्हारे भैया मुझे बहुत प्यार जो करते हैं!
किशन बोला, "माँ, बहुत झमेला हुआ यहाँ, इसलिये तुम सबको भैया ने जल्दी बुला लिया. भैया को मोच आते ही मैं तांगे मे उनको हाज़िपुर बाज़ार मे डाक्टर मिश्रा के यहाँ ले गया. वही मलहम-पट्*टी कर दिये और बोले कि कुछ दिन बिस्तर मे आराम करना."
मेरी सासुमाँ ने पूछा, "गुलाबी, रामु नही दिख रहा?"
गुलाबी अपनी चुनरी से घूंघट किये खड़ी थी. चुनरी का सिरा मुंह मे दबाये बोली, "मालकिन, ऊ आप लोगन के साथ जो सोनपुर गये थे, तब से लौटे ही नही हैं!"
सासुमाँ बोली, "हूं! अपने गाँव जाकर यहाँ सबको भूल गया है! लौटेगा तो अच्छी सबक सिखाउंगी!" फिर मेरे देवर को बोली, "किशन, तु जा के अपनी पढ़ाई कर. अब मैं और तेरी भाभी आ गये हैं. हम सब सम्भाल लेंगे."
किशन के जाते ही मैने कहा, "माँ, आप बैठिये. मैं सेंक लगाने के लिये गरम पानी लाती हूँ."
सासुमाँ बोली, "नही बहु, तु बैठ के बातें कर. बलराम बहुत दिनो बाद मिल रहा है न तुझसे. चल गुलाबी, मेरे साथ रसोई मे चल."
बोलकर सासुमाँ और गुलाबी मुझे तुम्हारे भैया के साथ अकेले छोड़कर चले गये.
सबके जाते ही, तुम्हारे भैया ने मेरा हाथ पकड़कर जोर से खींचा और मुझे अपने सीने पे गिरा दिया.
"उई माँ! यह क्या हो गया आपको?" मैं बोली. मेरी नर्म चूचियां उनके कठोर सीने से लगकर पिचक गयी थी.
उन्होने मेरे नर्म होठों को अपने होठों से चूमा और बोले, "मेरी जान, कितने दिनो से तुम्हारी इस जवानी का मज़ा नही लिया, तुम्हारे इन गुलाबी होठों का रस नही पिया. मुझे बहुत याद आती थी अपनी प्यारी पत्नी की!"
फिर वह अपने हाथ मेरे चूचियों पर ले जाकर उन्हे मसलने लगे. इतने दिनो बाद पति का प्यार पाकर मुझे बहुत अच्छा लगाने लगा.
"क्यों, जान, तुम्हे मेरी याद आयी कि नही?" उन्होने पूछा.
"ऊंहुं!" मैने शरम का नाटक करते हुए सरासर झूठ बोला. "मुझे भी आपकी बहुत याद आयी."
मैने यह बताना उचित नही समझा कि सोनपुर मे मैं रोज़ इतने लौड़े ले रही थी कि पति की याद आने का मुझे समय ही कहाँ था!
हुम दोनो कुछ देर इसी तरह उलझे रहे. मैं उनके मस्त होठों को पीती रही, वह मेरे चूचियों को मसलते रहे. उनका लन्ड लुंगी के अन्दर तनकर खड़ा हो गया था. मैने हाथ से उसे पकड़ा और सहलाकर कहा, "क्या जी, इसका यह क्या हाल बना लिया है आपने?"
वह बोले, "मैने कहाँ, तुमने यह हाल बनाया है, मेरी जान! दस दिनो से तरस रहा हूँ इसे तुम्हारे अन्दर डालने के लिये! अब तुम आ गयी हो तो और सब्र नही हो रहा."
मैने कहा, "पागल हो गये हैं आप! माँ रसोई मे हैं. कभी भी आ सकती हैं. जो करना है रात को कर लेना."
वह बोले, "मीना, तुम नही जानती मेरा क्या हाल हुआ है इन दस दिनो की जुदाई मे! मैं सच मे पागल ही हो गया हूँ! और कुछ नही तो थोड़ा चूस ही दो. मैं और बर्दाश्त नही कर सकता!"
मैने उठकर दरवाज़ा ठेल के बंद कर दिया और उनके पास बैठ गई. लुंगी को कमर के पास से खोलकर थोड़ा नीचे उतारा तो उनका लौड़ा थिरक कर बाहर आ गया. उन्होने चड्डी नही पहनी थी.
वीणा, तुम्हारे भैया का लौड़ा बहुत सुन्दर है - बिलकुल तुम्हारे मामाजी जैसा. संवला, मोटा, और 8 इंच लम्बा है. नीचे मोटा सा काला पेलड़ है जिसके दो अंडकोषों मे हमेशा बहुत वीर्य रहता है. शादी के बाद मैं बहुत मज़े से उनके लन्ड को चूसती थी और अपने चूत मे लेती थी. जब तक मैं महेश और विश्वनाथजी से नही चुदी थी तब तक मुझे पता नही था कि लन्ड इससे भी बड़ा होता है.
मैने झुक कर उनके लन्ड को मुंह मे ले लिया और चूसने लगी. कितना स्वाद आ रहा था इतने दिनो बाद अपने पति का लौड़ा चखने मे. मेरे वह तो मज़े मे जोर से कराह उठे. मैं मज़े से उनका लौड़ा चूसती रही और उंगलियों से उनके पेलड़ को सहलाती रही और वह मेरे सर पर हाथ फेरते रहे.
"आह!! कितना अच्छा चूस रही हो, मेरी जान! ऊम्म!! सुपाड़े को ज़रा जीभ से चाटो! उफ़्फ़!! ऐसा लन्ड चूसना तुम्हे किसने सिखाया?"
मैने उनके लन्ड से मुंह उठाया और कहा, "आपने, और किसने!"
वैसे सच कहूं तो लन्ड चूसने की सही कला तो मैने रमेश और उनके तीन दोस्त, और विश्वनाथजी का हबशी लौड़ा चूसकर ही सीखा था.
हम पति-पत्नी वैवाहिक प्रेम मे जुटे ही थे कि फ़ट! से कमरे का दरवाज़ा खुला. गुलाबी एक गमले मे गरम पानी लेकर दन-दनाकर अन्दर आ गई. मुझे तुम्हारे भैया के लौड़े पर झुके देखकर चीख उठी, "हाय दईया!!" और तुरंत कमरे के बाहर निकल गयी. मैने झट से उनका खड़ा लौड़ा लुंगी से ढक दिया.
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मेरी प्यारी वीणा,
सासुमाँ और मैं सकुशल घर पहुंच गये हैं. घर पर सब ठीक है. तुम्हारे बलराम भैया के पाँव मे बहुत जोर की मोच आयी है. सारा दिन बिस्तर पर लेटे रहते हैं.
अब आती हूँ यहाँ घर के हाल-चाल पर.
तुम्हारी मामीजी और मैं हाज़िपुर स्टेशन से तांगा लेकर शाम तक गाँव पहुचे. पहुंचकर देखा तुम्हारे बलराम भैया अपने बिस्तर पर दायें पाँव मे मलहम-पट्टी किये पड़े हुए हैं. सेवा मे मेरा देवर किशन और हमारे नौकर रामु की जोरु गुलाबी बैठे हैं.
मुझे देखर मेरे पति देव का चेहरा खिल उठा. घर के सब लोग मौजूद थे नही तो वह तो मुझे वहीं गले लगा लेते. आखिर तुम्हारे भैया मुझे बहुत प्यार जो करते हैं!
किशन बोला, "माँ, बहुत झमेला हुआ यहाँ, इसलिये तुम सबको भैया ने जल्दी बुला लिया. भैया को मोच आते ही मैं तांगे मे उनको हाज़िपुर बाज़ार मे डाक्टर मिश्रा के यहाँ ले गया. वही मलहम-पट्*टी कर दिये और बोले कि कुछ दिन बिस्तर मे आराम करना."
मेरी सासुमाँ ने पूछा, "गुलाबी, रामु नही दिख रहा?"
गुलाबी अपनी चुनरी से घूंघट किये खड़ी थी. चुनरी का सिरा मुंह मे दबाये बोली, "मालकिन, ऊ आप लोगन के साथ जो सोनपुर गये थे, तब से लौटे ही नही हैं!"
सासुमाँ बोली, "हूं! अपने गाँव जाकर यहाँ सबको भूल गया है! लौटेगा तो अच्छी सबक सिखाउंगी!" फिर मेरे देवर को बोली, "किशन, तु जा के अपनी पढ़ाई कर. अब मैं और तेरी भाभी आ गये हैं. हम सब सम्भाल लेंगे."
किशन के जाते ही मैने कहा, "माँ, आप बैठिये. मैं सेंक लगाने के लिये गरम पानी लाती हूँ."
सासुमाँ बोली, "नही बहु, तु बैठ के बातें कर. बलराम बहुत दिनो बाद मिल रहा है न तुझसे. चल गुलाबी, मेरे साथ रसोई मे चल."
बोलकर सासुमाँ और गुलाबी मुझे तुम्हारे भैया के साथ अकेले छोड़कर चले गये.
सबके जाते ही, तुम्हारे भैया ने मेरा हाथ पकड़कर जोर से खींचा और मुझे अपने सीने पे गिरा दिया.
"उई माँ! यह क्या हो गया आपको?" मैं बोली. मेरी नर्म चूचियां उनके कठोर सीने से लगकर पिचक गयी थी.
उन्होने मेरे नर्म होठों को अपने होठों से चूमा और बोले, "मेरी जान, कितने दिनो से तुम्हारी इस जवानी का मज़ा नही लिया, तुम्हारे इन गुलाबी होठों का रस नही पिया. मुझे बहुत याद आती थी अपनी प्यारी पत्नी की!"
फिर वह अपने हाथ मेरे चूचियों पर ले जाकर उन्हे मसलने लगे. इतने दिनो बाद पति का प्यार पाकर मुझे बहुत अच्छा लगाने लगा.
"क्यों, जान, तुम्हे मेरी याद आयी कि नही?" उन्होने पूछा.
"ऊंहुं!" मैने शरम का नाटक करते हुए सरासर झूठ बोला. "मुझे भी आपकी बहुत याद आयी."
मैने यह बताना उचित नही समझा कि सोनपुर मे मैं रोज़ इतने लौड़े ले रही थी कि पति की याद आने का मुझे समय ही कहाँ था!
हुम दोनो कुछ देर इसी तरह उलझे रहे. मैं उनके मस्त होठों को पीती रही, वह मेरे चूचियों को मसलते रहे. उनका लन्ड लुंगी के अन्दर तनकर खड़ा हो गया था. मैने हाथ से उसे पकड़ा और सहलाकर कहा, "क्या जी, इसका यह क्या हाल बना लिया है आपने?"
वह बोले, "मैने कहाँ, तुमने यह हाल बनाया है, मेरी जान! दस दिनो से तरस रहा हूँ इसे तुम्हारे अन्दर डालने के लिये! अब तुम आ गयी हो तो और सब्र नही हो रहा."
मैने कहा, "पागल हो गये हैं आप! माँ रसोई मे हैं. कभी भी आ सकती हैं. जो करना है रात को कर लेना."
वह बोले, "मीना, तुम नही जानती मेरा क्या हाल हुआ है इन दस दिनो की जुदाई मे! मैं सच मे पागल ही हो गया हूँ! और कुछ नही तो थोड़ा चूस ही दो. मैं और बर्दाश्त नही कर सकता!"
मैने उठकर दरवाज़ा ठेल के बंद कर दिया और उनके पास बैठ गई. लुंगी को कमर के पास से खोलकर थोड़ा नीचे उतारा तो उनका लौड़ा थिरक कर बाहर आ गया. उन्होने चड्डी नही पहनी थी.
वीणा, तुम्हारे भैया का लौड़ा बहुत सुन्दर है - बिलकुल तुम्हारे मामाजी जैसा. संवला, मोटा, और 8 इंच लम्बा है. नीचे मोटा सा काला पेलड़ है जिसके दो अंडकोषों मे हमेशा बहुत वीर्य रहता है. शादी के बाद मैं बहुत मज़े से उनके लन्ड को चूसती थी और अपने चूत मे लेती थी. जब तक मैं महेश और विश्वनाथजी से नही चुदी थी तब तक मुझे पता नही था कि लन्ड इससे भी बड़ा होता है.
मैने झुक कर उनके लन्ड को मुंह मे ले लिया और चूसने लगी. कितना स्वाद आ रहा था इतने दिनो बाद अपने पति का लौड़ा चखने मे. मेरे वह तो मज़े मे जोर से कराह उठे. मैं मज़े से उनका लौड़ा चूसती रही और उंगलियों से उनके पेलड़ को सहलाती रही और वह मेरे सर पर हाथ फेरते रहे.
"आह!! कितना अच्छा चूस रही हो, मेरी जान! ऊम्म!! सुपाड़े को ज़रा जीभ से चाटो! उफ़्फ़!! ऐसा लन्ड चूसना तुम्हे किसने सिखाया?"
मैने उनके लन्ड से मुंह उठाया और कहा, "आपने, और किसने!"
वैसे सच कहूं तो लन्ड चूसने की सही कला तो मैने रमेश और उनके तीन दोस्त, और विश्वनाथजी का हबशी लौड़ा चूसकर ही सीखा था.
हम पति-पत्नी वैवाहिक प्रेम मे जुटे ही थे कि फ़ट! से कमरे का दरवाज़ा खुला. गुलाबी एक गमले मे गरम पानी लेकर दन-दनाकर अन्दर आ गई. मुझे तुम्हारे भैया के लौड़े पर झुके देखकर चीख उठी, "हाय दईया!!" और तुरंत कमरे के बाहर निकल गयी. मैने झट से उनका खड़ा लौड़ा लुंगी से ढक दिया.
बाहर सासुमाँ की आवाज़ आयी, "क्या हुआ, गुलाबी! तु चिल्लाई क्यों?"
गुलाबी बोली, "मालकिन, वह भाभी और बड़े भैया..."
सासुमाँ गुलाबी को डांटकर बोली, "अरी मूरख! कोई पति-पत्नी के कमरे मे ऐसे ही घुस जाता है क्या?"
फिर वह थोड़ी देर बाद गुलाबी को लेकर हमारे कमरे मे आई.
तब तक मैने उठकर अपनी साड़ी ठीक कर ली थी और आंचल से घूंघट कर लिया था. पर मेरे उनका लौड़ा तो लुंगी मे तब भी तम्बू बनाये हुए था. गुलाबी की नज़र तो लौड़े से हट ही नही रही थी. मेरे वह बहुत लज्जित हो रहे थे अपने खड़े औज़ार पे, पर न जाने क्यों उनका लन्ड लुंगी मे फनफनाता ही रहा. जैसे माँ और गुलाबी के आने से उनके अन्दर एक भ्रष्ट आनंद उठने लगा था.
सासुमाँ ने एक नज़र बेटे के खड़े लौड़े पर डाली फिर उसे अनदेखा करके मुझे बोली, "बहु, तु मेरे साथ ज़रा रसोई मे आ. गुलाबी, तु बड़े भैया के पाँव को सेंक दे."
गुलाबी उनके खड़े लौड़े पे नज़र गाड़े हुए ना-नुकुर करने लगी, पर सासुमाँ ने अनसुनी कर दी. हम दोनो रसोई मे आ गये.
रसोई मे आते ही सासुमाँ मुस्कुराकर बोली, "क्या बहु, घर आते ही पति के औज़ार पर टूट पड़ी? रात का भी इंतिज़ार नही हुआ?"
"क्या करूं, माँ! दस दिन हो गये हैं उनके साथ सोये हुए. मैं अपने आप को सम्भाल नही पायी." मैने कहा.
"पर पिछले दस दिनो मे तुने लन्ड कुछ कम भी तो नही खाये हैं! कल रात ही तो तुने छह-छह मर्दों का लिया था." सासुमाँ बोलीं.
मैं थोड़ा शर्म से लाल होती बोली, "माँ, पर वह तो कल रात की बात थी. आज तो पूरे दिन मैने कुछ किया ही नही!"
"और करना भी मत!" सासुमाँ बोलीं.
"वह क्यों?"
"बहु, जैसा कहती हूँ वैसा ही कर." सासुमाँ बोली, "तु आज रात को बलराम से साथ सोना ज़रूर. उसे प्यार भी करना और थोड़ा मज़ा भी देना. पर ध्यान रहे उसके साथ संभोग नही करना. बस उसे बहुत गरम करके छोड़ देना. कहना उसके पाँव मे बहुत चोट लगी है. संभोग करने से चोट बढ़ सकती हैं."
"माँ, मुझे तो लगता है आज उनको मेरी चूत नही मिली तो वह पागल ही हो जायेंगे!" मैने कहा.
"अरे बहु, यही तो मैं चाहती हूँ!" सासुमाँ हंसकर बोली. "वैसे भी इन दस दिनो मे गुलाबी की मस्त जवानी देख देखकर बलराम बहुत ही नाज़ुक हालत मे है. देखा नही कैसी भूखी नज़रों से गुलाबी के उभारों को ताड़ रहा था?"
"हाँ, पर गुलाबी वैसी लड़की नही है." मैने कहा, "वह नही देने वाली आपके बेटे को."
"और मैं चाहती भी यही हूँ कि बलराम को कहीं से भी अपनी हवस मिटाने का मौका न मिले." सासुमाँ बोली. "बस तु मेरे कहे पर चलती रह और देख क्या क्या होता है!"
"पर माँ, मेरा क्या होगा!" मैं लगभग रोकर बोली, "मैं तो अभी से ही बहुत गरम हो गयी हूँ!"
"तेरा इंतज़ाम मैं करती हूँ, बहु!" सासुमाँ बोली, "तेरे ससुरजी कल आ जायेंगे. फिर जितना चाहे उनसे अपनी प्यास बुझा लेना. बस आज की रात किसी तरह गुज़ार ले. मेरा भी तो तेरे जैसा ही हाल है!"
उस रात को खाने के बाद हम सब अपने अपने कमरे मे चले गये. तुम्हारे भैया तो मुझे देखकर फूले नही समा रहे थे. उनका लन्ड अब भी लुंगी मे तनकर खड़ा था.
मैने दरवाज़ा बंद किया और उनके पास पलंग पर जा बैठी और उनके लौड़े को लुंगी के ऊपर से पकड़कर बोली, "क्यों जी, आप शाम से यूं ही इसे खड़ा किये बैठे हैं क्या?"
"मेरी जान, जब से तुम सोनपुर गयी हो यह ऐसे ही खड़ा है!" वह बोले, और मुझे एक पल सांस लेने दिये बगैर उन्होने खींचकर मुझे अपने बलिष्ठ सीने पर लिटा लिया और अपने होंठ मेरे होठों पर चिपकाकर गहरे चुम्बन लेने लगे. वैसे तो मैं लौड़ा लेने के लिये मर रही थी, पर सासुमाँ के हिदायत की मुतबिक नखरा करने लगी.
"ओफ़फ़ो!" मैने कहा, "मुझे थोड़ा सांस तो लेने दीजिये!"
"सांस बाद मे ले लेना, मेरी जान!" मेरे वह बोले और अपने सख्त, मर्दाने हाथों से मेरी चूचियों को मसलने लगे. "पहले प्यासे पति की प्यास बुझाओ! चलो, अपनी ब्लाउज़ उतारो जल्दी से!"
मैने उठकर अपना ब्लाउज़ उतार दिया. ब्लाउज़ उतरा नही कि उन्होने हाथ मेरे पीठ के पीछे ले जाकर मेरी ब्रा का हुक खोल दिया और मेरे ब्रा को उतारकर कमरे के कोने मे फेंक दिया. अब मेरे नंगे नर्म चूचियों को दोनो हाथों से पकड़कर जी भर के मसलने लगे. मुझे तो मज़ा बहुत आ रहा था! पर मैने कोई पहल नही की.
थोड़ी देर बाद वह बोले, "इधर आओ और ज़रा अपने दूध पिलाओ!"
मैं अपनी चूचियां उनके मुंह के पास ले गयी तो दोनो हाथों से पकड़कर बारी बारी मेरी दोनो चूचियों को वह पीने लगे और मेरे निप्पलों पर जीभ चलाने लगे. मैं मज़े मे गनगना उठी. मेरी चूत तो कब से गीली हो चुकी थी. मैं तो क्या, कोई भी औरत होती तो और बर्दाश्त नही कर पाती और उनका लौड़ा अपनी चूत मे लेकर खुद ही चुदने लगती. पर मैने अपनी हवस को मुश्किल से काबू मे किया. बस अपना हाथ उनकी लुंगी मे ले जाकर उनके सख्त लन्ड को हिलाने लगी.
"जान, अब साड़ी उतार दो!" मेरे वह बोले. मैने कुछ ना-नुकुर की तो वह बोले, "मीना, क्या हो गया आज तुमको? रोज तो मेरा लन्ड लेने के लिये खुद ही कपड़े उतारकर तैयार हो जाती हो?"
मैने उठकर अपनी साड़ी उतारकर रख दी और अब सिर्फ़ पेटीकोट मे उनसे लिपट गयी. उनके लुंगी और बनियान को उतारकर उन्हे पूरा नंगा कर दिया.
वीणा, तुम तो जानती हो तुम्हारे बलराम भैया कितने लंबे-चौड़े, बलवान और सुन्दर हैं. पर तुमने उन्हे नंगा नही देखा है. खेत मे काम करने के कारण बहुत कसा हुआ शरीर है उनका. सीने पर हलके बाल हैं. हालांकि वह तुम्हारे ममेरे भाई हैं, तुम उन्हे इस हालत मे देखती तो तुरंत वासना से भर उठती.
मैं उनके गरम लन्ड को धीरे धीरे हिला रही थी. उनके शक्तिशाली हाथ मेरे सारे जिस्म पर फिर रहे थे और मुझे मदहोश बना रहे थे. मैं आंखे बंद किये अपने प्यारे पति देव के प्यार का मज़ा ले रही थी. अचानक मुझे महसूस हुआ कि उन्होने मेरे पेटीकोट का नाड़ा खोल दिया है. मैं उठके बैठ गयी और मैने फिर से नाड़ा लगा लिया.
"मीना! यह क्या कर रही हो तुम!" हैरान होकर मेरे वह बोले. "पेटीकोट उतारो जल्दी से! मैं शाम से तुम्हे चोदने के लिये बेकरार हूँ!"
मैं बिस्तर से उठ खड़ी हुई और बोली, "कैसे चोदेंगे आप, हाँ? खुद उठकर बाथरूम भी नही जा पा रहे हैं, मेरे ऊपर चढ़ेंगे कैसे?"
"तो तुम, मुझ पर चढ़ जाओ ना!" वह बोले.
"नही. आज चुदाई नही होगी." मैने कहा और अपनी साड़ी बिस्तर पर से समेटने लगी.
"मगर क्यों?" वह बोले.
"आपके भले के लिये कह रही हूँ." मैने कहा. "आप बहुत ज़्यादा जोश मे हैं. आज चुदाई करेंगे तो ज़रूर आपके पाँव मे और चोट लग जायेगी. दो चार दिन मे ठीक हो जाइये, फिर जितना चाहे मुझे चोद लेना."
"उफ़्फ़! साली, जी कर रहा है तुझे पकड़ के लाऊं और पटक कर चोदूं!"
मैने हंसकर कहा, "मुझे पकड़ सकते हैं तो पकड़ लीजिये ना! मैं खुशी खुशी चुदवा लुंगी." बोलकर मैने अपनी समेटी हुई साड़ी अपने नंगे सीने पर रखी और दरवाज़े की तरफ़ चल दी.
"मीना! कहाँ चल दी तुम?"
"किसी और कमरे मे सोने! यहाँ न आप खुद सोयेंगे और न मुझे सोने देंगे. और ऊपर से अपने पाँव को चोट पहुंचा बैठेंगे."
बोलकर उन्हे गुस्से मे बिलबिलाता छोड़कर मैं दरवाज़ा खोलकर बाहर आ गई.
गुलाबी बोली, "मालकिन, वह भाभी और बड़े भैया..."
सासुमाँ गुलाबी को डांटकर बोली, "अरी मूरख! कोई पति-पत्नी के कमरे मे ऐसे ही घुस जाता है क्या?"
फिर वह थोड़ी देर बाद गुलाबी को लेकर हमारे कमरे मे आई.
तब तक मैने उठकर अपनी साड़ी ठीक कर ली थी और आंचल से घूंघट कर लिया था. पर मेरे उनका लौड़ा तो लुंगी मे तब भी तम्बू बनाये हुए था. गुलाबी की नज़र तो लौड़े से हट ही नही रही थी. मेरे वह बहुत लज्जित हो रहे थे अपने खड़े औज़ार पे, पर न जाने क्यों उनका लन्ड लुंगी मे फनफनाता ही रहा. जैसे माँ और गुलाबी के आने से उनके अन्दर एक भ्रष्ट आनंद उठने लगा था.
सासुमाँ ने एक नज़र बेटे के खड़े लौड़े पर डाली फिर उसे अनदेखा करके मुझे बोली, "बहु, तु मेरे साथ ज़रा रसोई मे आ. गुलाबी, तु बड़े भैया के पाँव को सेंक दे."
गुलाबी उनके खड़े लौड़े पे नज़र गाड़े हुए ना-नुकुर करने लगी, पर सासुमाँ ने अनसुनी कर दी. हम दोनो रसोई मे आ गये.
रसोई मे आते ही सासुमाँ मुस्कुराकर बोली, "क्या बहु, घर आते ही पति के औज़ार पर टूट पड़ी? रात का भी इंतिज़ार नही हुआ?"
"क्या करूं, माँ! दस दिन हो गये हैं उनके साथ सोये हुए. मैं अपने आप को सम्भाल नही पायी." मैने कहा.
"पर पिछले दस दिनो मे तुने लन्ड कुछ कम भी तो नही खाये हैं! कल रात ही तो तुने छह-छह मर्दों का लिया था." सासुमाँ बोलीं.
मैं थोड़ा शर्म से लाल होती बोली, "माँ, पर वह तो कल रात की बात थी. आज तो पूरे दिन मैने कुछ किया ही नही!"
"और करना भी मत!" सासुमाँ बोलीं.
"वह क्यों?"
"बहु, जैसा कहती हूँ वैसा ही कर." सासुमाँ बोली, "तु आज रात को बलराम से साथ सोना ज़रूर. उसे प्यार भी करना और थोड़ा मज़ा भी देना. पर ध्यान रहे उसके साथ संभोग नही करना. बस उसे बहुत गरम करके छोड़ देना. कहना उसके पाँव मे बहुत चोट लगी है. संभोग करने से चोट बढ़ सकती हैं."
"माँ, मुझे तो लगता है आज उनको मेरी चूत नही मिली तो वह पागल ही हो जायेंगे!" मैने कहा.
"अरे बहु, यही तो मैं चाहती हूँ!" सासुमाँ हंसकर बोली. "वैसे भी इन दस दिनो मे गुलाबी की मस्त जवानी देख देखकर बलराम बहुत ही नाज़ुक हालत मे है. देखा नही कैसी भूखी नज़रों से गुलाबी के उभारों को ताड़ रहा था?"
"हाँ, पर गुलाबी वैसी लड़की नही है." मैने कहा, "वह नही देने वाली आपके बेटे को."
"और मैं चाहती भी यही हूँ कि बलराम को कहीं से भी अपनी हवस मिटाने का मौका न मिले." सासुमाँ बोली. "बस तु मेरे कहे पर चलती रह और देख क्या क्या होता है!"
"पर माँ, मेरा क्या होगा!" मैं लगभग रोकर बोली, "मैं तो अभी से ही बहुत गरम हो गयी हूँ!"
"तेरा इंतज़ाम मैं करती हूँ, बहु!" सासुमाँ बोली, "तेरे ससुरजी कल आ जायेंगे. फिर जितना चाहे उनसे अपनी प्यास बुझा लेना. बस आज की रात किसी तरह गुज़ार ले. मेरा भी तो तेरे जैसा ही हाल है!"
उस रात को खाने के बाद हम सब अपने अपने कमरे मे चले गये. तुम्हारे भैया तो मुझे देखकर फूले नही समा रहे थे. उनका लन्ड अब भी लुंगी मे तनकर खड़ा था.
मैने दरवाज़ा बंद किया और उनके पास पलंग पर जा बैठी और उनके लौड़े को लुंगी के ऊपर से पकड़कर बोली, "क्यों जी, आप शाम से यूं ही इसे खड़ा किये बैठे हैं क्या?"
"मेरी जान, जब से तुम सोनपुर गयी हो यह ऐसे ही खड़ा है!" वह बोले, और मुझे एक पल सांस लेने दिये बगैर उन्होने खींचकर मुझे अपने बलिष्ठ सीने पर लिटा लिया और अपने होंठ मेरे होठों पर चिपकाकर गहरे चुम्बन लेने लगे. वैसे तो मैं लौड़ा लेने के लिये मर रही थी, पर सासुमाँ के हिदायत की मुतबिक नखरा करने लगी.
"ओफ़फ़ो!" मैने कहा, "मुझे थोड़ा सांस तो लेने दीजिये!"
"सांस बाद मे ले लेना, मेरी जान!" मेरे वह बोले और अपने सख्त, मर्दाने हाथों से मेरी चूचियों को मसलने लगे. "पहले प्यासे पति की प्यास बुझाओ! चलो, अपनी ब्लाउज़ उतारो जल्दी से!"
मैने उठकर अपना ब्लाउज़ उतार दिया. ब्लाउज़ उतरा नही कि उन्होने हाथ मेरे पीठ के पीछे ले जाकर मेरी ब्रा का हुक खोल दिया और मेरे ब्रा को उतारकर कमरे के कोने मे फेंक दिया. अब मेरे नंगे नर्म चूचियों को दोनो हाथों से पकड़कर जी भर के मसलने लगे. मुझे तो मज़ा बहुत आ रहा था! पर मैने कोई पहल नही की.
थोड़ी देर बाद वह बोले, "इधर आओ और ज़रा अपने दूध पिलाओ!"
मैं अपनी चूचियां उनके मुंह के पास ले गयी तो दोनो हाथों से पकड़कर बारी बारी मेरी दोनो चूचियों को वह पीने लगे और मेरे निप्पलों पर जीभ चलाने लगे. मैं मज़े मे गनगना उठी. मेरी चूत तो कब से गीली हो चुकी थी. मैं तो क्या, कोई भी औरत होती तो और बर्दाश्त नही कर पाती और उनका लौड़ा अपनी चूत मे लेकर खुद ही चुदने लगती. पर मैने अपनी हवस को मुश्किल से काबू मे किया. बस अपना हाथ उनकी लुंगी मे ले जाकर उनके सख्त लन्ड को हिलाने लगी.
"जान, अब साड़ी उतार दो!" मेरे वह बोले. मैने कुछ ना-नुकुर की तो वह बोले, "मीना, क्या हो गया आज तुमको? रोज तो मेरा लन्ड लेने के लिये खुद ही कपड़े उतारकर तैयार हो जाती हो?"
मैने उठकर अपनी साड़ी उतारकर रख दी और अब सिर्फ़ पेटीकोट मे उनसे लिपट गयी. उनके लुंगी और बनियान को उतारकर उन्हे पूरा नंगा कर दिया.
वीणा, तुम तो जानती हो तुम्हारे बलराम भैया कितने लंबे-चौड़े, बलवान और सुन्दर हैं. पर तुमने उन्हे नंगा नही देखा है. खेत मे काम करने के कारण बहुत कसा हुआ शरीर है उनका. सीने पर हलके बाल हैं. हालांकि वह तुम्हारे ममेरे भाई हैं, तुम उन्हे इस हालत मे देखती तो तुरंत वासना से भर उठती.
मैं उनके गरम लन्ड को धीरे धीरे हिला रही थी. उनके शक्तिशाली हाथ मेरे सारे जिस्म पर फिर रहे थे और मुझे मदहोश बना रहे थे. मैं आंखे बंद किये अपने प्यारे पति देव के प्यार का मज़ा ले रही थी. अचानक मुझे महसूस हुआ कि उन्होने मेरे पेटीकोट का नाड़ा खोल दिया है. मैं उठके बैठ गयी और मैने फिर से नाड़ा लगा लिया.
"मीना! यह क्या कर रही हो तुम!" हैरान होकर मेरे वह बोले. "पेटीकोट उतारो जल्दी से! मैं शाम से तुम्हे चोदने के लिये बेकरार हूँ!"
मैं बिस्तर से उठ खड़ी हुई और बोली, "कैसे चोदेंगे आप, हाँ? खुद उठकर बाथरूम भी नही जा पा रहे हैं, मेरे ऊपर चढ़ेंगे कैसे?"
"तो तुम, मुझ पर चढ़ जाओ ना!" वह बोले.
"नही. आज चुदाई नही होगी." मैने कहा और अपनी साड़ी बिस्तर पर से समेटने लगी.
"मगर क्यों?" वह बोले.
"आपके भले के लिये कह रही हूँ." मैने कहा. "आप बहुत ज़्यादा जोश मे हैं. आज चुदाई करेंगे तो ज़रूर आपके पाँव मे और चोट लग जायेगी. दो चार दिन मे ठीक हो जाइये, फिर जितना चाहे मुझे चोद लेना."
"उफ़्फ़! साली, जी कर रहा है तुझे पकड़ के लाऊं और पटक कर चोदूं!"
मैने हंसकर कहा, "मुझे पकड़ सकते हैं तो पकड़ लीजिये ना! मैं खुशी खुशी चुदवा लुंगी." बोलकर मैने अपनी समेटी हुई साड़ी अपने नंगे सीने पर रखी और दरवाज़े की तरफ़ चल दी.
"मीना! कहाँ चल दी तुम?"
"किसी और कमरे मे सोने! यहाँ न आप खुद सोयेंगे और न मुझे सोने देंगे. और ऊपर से अपने पाँव को चोट पहुंचा बैठेंगे."
बोलकर उन्हे गुस्से मे बिलबिलाता छोड़कर मैं दरवाज़ा खोलकर बाहर आ गई.
मैने सोचा था सब सो चुके होंगे, पर दरवाज़े के बाहर अपने देवर किशन को देखकर मैं चौंक उठी. वह भी मुझे देखकर सकपका गया.
कमरे के बाहर बैठकखाने की बत्ती जल रही थी और मुझे अपने अध-नंगेपन का ऐहसास होने लगा. मैने सिर्फ़ अपनी पेटीकोट पहनी हुई थी और ऊपर से नंगी थी. अपनी समेटी हुई साड़ी से अपने चूचियों को ढकने की कोशिश करते हुए मैं बोली, "देवरजी, तुम यहाँ?"
किशन हकलाने लगा और बोला, "भ-भाभी...वह म-मै तो बस यूं ही...रसोई की तरफ़ जा...जा रहा था...प-पानी पीने."
कमरे के बाहर बैठकखाने की बत्ती जल रही थी और मुझे अपने अध-नंगेपन का ऐहसास होने लगा. मैने सिर्फ़ अपनी पेटीकोट पहनी हुई थी और ऊपर से नंगी थी. अपनी समेटी हुई साड़ी से अपने चूचियों को ढकने की कोशिश करते हुए मैं बोली, "देवरजी, तुम यहाँ?"
किशन हकलाने लगा और बोला, "भ-भाभी...वह म-मै तो बस यूं ही...रसोई की तरफ़ जा...जा रहा था...प-पानी पीने."
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मैने उसे ऊपर से नीचे देखा तो पाया उसका औज़ार पजामे के अन्दर ठनका हुआ है. उसने अपने हाथों से अपने लौड़े को पजामे मे दबाने की बेकार कोशिश की.
"सच बोल रहे हो तुम, या फिर कुछ और कर रहे थे मेरे दरवाज़े के पास?" मैने पूछा. मुझे तो पूरा अंदाज़ा हो गया था कि किशन दरवाज़े की फांक से अपने भैया भाभी को जवानी का मज़ा लेते देख रहा था.
"नही, भाभी, म-माँ कसम! मैं सच ब-बोल रहा हूँ." किशन बोला.
बल्ब की धीमी रोशनी मे मेरा गोरा अध-नंगा शरीर किशन सामने था और वह मेरी जवानी को आंखों से पीये जा रहा था. मैं अपने पति के साथ चुदाई ना कर पाने की वजह से बहुत चुदासी हुई पड़ी थी. मेरा मन डोल गया. जी हुआ अपने देवर को उसके कमरे मे ले जाकर अपने सारे जलवे दिखाऊं और फिर उससे चुदाई करवाऊं. पर मैने जल्दबाजी करना उचित नही समझा. दिल पर पत्थर रखकर मैने कहा, "देवरजी, इस बारे मे हम कल बात करेंगे. जाओ, पानी पीकर सो जाओ!"
किशन छुटते ही रसोई की तरफ़ भागा. मैं अपने सास-ससुर के कमरे मे गयी. सोचा सासुमाँ के साथ ही सो जाऊंगी.
दरवाज़ा खट्खटाने पर सासुमाँ ने दरवाज़ा खोला. मुझे देखकर बोली, "क्या हुआ, बहु? और तु अध-नंगी क्यों है?"
मैने कहा, "माँ, आपके बेटे बहुत ज़िद कर रहे थे, तो मैने सोचा आपके कमरे मे सो जाऊं."
सासुमाँ हंसी और बोली, "अच्छा किया तु आई. बलराम को तुने बहुत चढ़ा दी है क्या?"
"हाँ. वह खुद चल पाते तो मुझे पटक कर अपनी दस दिनो की हवस मिटा लेते!"
सासुमाँ बिस्तर पर लेट गई. मेरे पास ब्लाउज़ और ब्रा तो था नही, पर मैने साड़ी पहनी शुरु की तो सासुमाँ बोली, "अरे बहु, तु साड़ी क्यों पहने लगी? आज ऐसे ही सो जा. तुझे तो सोनपुर मे मैने पूरा नंगा देखा है."
वैसे तो सासुमाँ और मैने सोनपुर मे एक दूसरे के सामने चुदाई भी की थी, पर मुझे थोड़ी शरम सी लगने लगी. मैने बत्ती बुझा दी और अपनी साड़ी एक कुर्सी पर रखकर उनके बगल मे एक चादर ओढ़कर लेट गई.
कुछ देर बाद सासुमाँ बोली, "बहु, सोनपुर की बहुत याद आ रही है. हम सबने बहुत मज़े लिये थे वहाँ."
मैं बोली, "माँ, विश्वनाथजी कह रहे थे उन्होने आपके साथ ट्रेन मे भी किया था?"
"हाँ रे!" सासुमाँ एक खुशी की सांस छोड़ती हुई बोली. "मेरे मैके जाते समय ट्रेन लगभग खाली ही थी. हम दोनो एक खाली कूपे मे बैठ थे. पहले तो विश्वनाथजी मेरी जांघों को सहलाने लगे, फिर मेरी चूचियों को दबाने लगे. मैने थोड़ा नखरा किया तो वह बोले, ’भाभीजी, आप कल रात चार-चार का लन्ड ली हैं. बस मुझे ही मौका नही मिला. कहो तो आपके पति को सब बता दूँ?’"
"फिर आपने क्या कहा?" मैने पूछा.
"सच बात तो यह थी कि मैं खुद उनसे चुदने को तैयार बैठी थी." सासुमाँ बोली, "मैने उन्हे अपनी चूचियां दबाने दी. कुछ देर बाद, नीचे से मेरी साड़ी मे हाथ डालकर मेरी चूत मे उंगली करने लगे. मेरी चूत तो बहुत ही गीली हो गयी थी. मुझे बोले, ’चलो भाभीजी, तुम्हे टॉलेट मे ले जाकर चोदते हैं.’ मैं तो घबरा गई."
"फिर?"
"फिर क्या, विश्वनाथजी कोई सुनने वाले लोगों मे हैं क्या?" सासुमाँ बोली, "मुझे जबरन टॉलेट के पास ले गये. उधर कोई नही था. एक टॉलेट खोलकर पहले मुझे अन्दर घुसा दिये, फिर खुद घुस गये. दरवाज़ा बंद करके वह मेरे ब्लाउज़ के हुक खोलने लगे. मैने कहा कि ऐसे ही साड़ी उठाके कर लो, पर वह माने नही."
"आपको पूरा नंगा कर दिया?"
"हाँ रे. मेरी साड़ी, ब्लाउज़, पेटीकोट सब उतार दिया. फिर खुद भी पूरे नंगे हो गये. क्या मज़ा आ रहा था चलती ट्रेन मे उनके नंगे बदन से अपने नंगे बदन को चिपकाने मे! डर भी लग रहा था कि कोई आ न जाये, और डर की वजह से मज़ा दुगना हो गया था." सासुमाँ बोली. "और ओह! कैसे खूंटे की तरह खड़ा था उनका विशाल लन्ड! मैं तो नीचे बैठकर कुछ देर उनका लन्ड जी भर के चूसी. फिर उन्होने मुझे आगे की तरफ़ झुकाया और पीछे से मेरी चूत मे अपना मूसल घुसा कर चोदने लगे."
"बहुत मज़ा आया होगा आपको?"
"हाँ, बहु. कभी मौका मिले तो ट्रेन मे किसी से चुदवाके देखना." सासुमाँ बोली, "ट्रेन तेजी से चल रही थी और डिब्बा जोरों से हिल रहा था. ट्रेन की ताल पर विश्वनाथजी मेरे चूचियों को मसलते हुए मुझे पेले जा रहे थे. मैं तो न जाने कितनी बार झड़ी. आते समय मैं खुद ही विश्वनाथजी को बोली कि मुझे ट्रेन के टॉलेट मे ले जाकर चोदें."
हुम कुछ देर अंधेरे मे चुपचाप लेटे रहे. आंखों मे नींद नही थी. मैं अपनी नंगी चूचियों को दोनो हाथों से मसल रही थी.
अचानक, सासुमाँ ने अपना हाथ मेरे एक चूची पर रखा और बोली, "बहु, अपने हाथों से कभी चूची दबाने का मज़ा आता है?" और फिर मेरे हाथ हटाकर मेरे निप्पल को छेड़ने लगी. मैं गनगना उठी.
"बहु, बहुत चुदवाने का मन कर रहा है क्या?" सासुमाँ ने भारी आवाज़ मे पूछा. वह कभी मेरी एक चूची को कभी दूसरी चूची को मसल रही थी.
"हा, माँ." मैने जवाब दिया.
"मै भी बहुत चुदासी हूँ." वह बोली. वह मेरे बहुत करीब आ गयी थी.
अचानक मैने उनकी सांसों को अपने चेहरे पर पाया, और वह मेरे होठों को पीने लगी.
वीणा, औरत के होठों मे वह बात नही जो एक मर्द के होठों मे होता है, पर इस वक्त मेरी जो हालत थी, मुझे सब कुछ मंज़ूर था. मैं भी पूरा साथ देकर सासुमाँ के होंठ पीने लगी. मैने उनके सीने पर हाथ रखा तो देखा कि उन्होने पहले से ही अपनी ब्लाउज़ और ब्रा उतार दी थी. तुम्हारी मामीजी थोड़ी मोटी हो गयी हैं और उनकी चूचियां काफ़ी बड़ी बड़ी हैं. हम दोनो एक दूसरे की चूचियों को मसल कर मज़ा देने लगे.
फिर सासुमाँ ने अपनी बड़ी बड़ी चूचियों को एक एक करके मेरे मुंह मे ठूंसना शुरु किया. उनके मोटे मोटे निप्पलों को चूस चूसकर मैने उन्हे मज़ा दिया. फिर उन्होने मेरी जवान चूचियों को पिया.
"हाय बहु, क्या गोल, नरम चूचियां है तेरी!" सासुमाँ बोली, "तभी तो इन्हे पी पीकर तेरे ससुर का मन नही भरता!"
"माँ, आपकी चूचियां भी बहुत सुन्दर हैं." मैने कहा. "अपनी साड़ी उतारिये ना!"
सासुमाँ ने उठकर अपनी साड़ी उतार दी, फिर पेटीकोट भी उतारकर पूरी नंगी हो गयी. अंधेरे मे कुछ दिखाई नही दे रहा था. वह फिर मेरे ऊपर लेट गयी और मेरे पेटीकोट के नाड़े को खोल दी.
मैने पेटीकोट को पाँव से अलग कर दिया. अब हम दोनो सास-बहु पूरी तरह नंगे होकर एक दूसरे से लिपटे हुए थे. हमारे होंठ एक दूसरे की गहरी चुम्बन ले रहे थे और हमारे हाथ एक दूसरे की चूचियों को मसले जा रहे थे. सासुमाँ मेरे ऊपर लेटकर अपनी चूत से मेरी चूत को रगड़ रही थी. काफ़ी मज़ा आ रहा था और हम दोनो एक दो बार ऐसे ही झड़ गये.
फिर सासुमाँ उठी और मेरी चूत की तरफ़ घूम गई. अपने दोनो पैर मेरे दोनो तरफ़ रखकर उन्होने अपनी मोटी बुर मेरे मुंह पर रख दी और बोली, "बहु, ज़रा चाट दे मेरी चूत को. मैं भी तेरी चूत चाट देती हूँ." फिर झुक कर मेरी गरम, गीली चूत को चाटने लगी. किसी औरत के साथ मैने कभी 69 नही किया था, पर मुझे बहुत मज़ा आया.
मेरी जीभ जैसे सासुमाँ की बुर मे गयी वह कराह उठी. "आह!! ऊम्म!! बहु, बहुत अच्छा चाट रही है. पहले भी चाटी है क्या किसी की चूत?"
"नही माँ." मैने कहा.
"तो सीख ले. काफ़ी मज़ा आता है औरतों के साथ जवानी का खेल खेलने मे भी." सासुमाँ बोली, "मैं तो बचपन से अपनी छोटी बहन से साथ कर रही हूँ. मुझे जवान लड़कियाँ अच्छी लगती हैं चूसने चाटने के लिये. गुलाबी जल्दी से लाईन पर आ जाये तो मैं उसकी चूचियां और चूत चूसकर खाऊंगी. हाय बहु, तेरी चूत कितनी स्वादिष्ट है! आह!! और अच्छे से चाट, बहु!"
"हाय माँ, मुझे भी बहुत मज़ा आ रहा है!" मैने कहा, "उम्म!!"
कुछ देर बाद सासुमाँ बोली, "बहु, पूरा मज़ा नही आ रहा. जा रसोई मे देख, लंबे बैंगन होंगे. दो मझले आकर के बैंगन ले आ."
मैने उसे ऊपर से नीचे देखा तो पाया उसका औज़ार पजामे के अन्दर ठनका हुआ है. उसने अपने हाथों से अपने लौड़े को पजामे मे दबाने की बेकार कोशिश की.
"सच बोल रहे हो तुम, या फिर कुछ और कर रहे थे मेरे दरवाज़े के पास?" मैने पूछा. मुझे तो पूरा अंदाज़ा हो गया था कि किशन दरवाज़े की फांक से अपने भैया भाभी को जवानी का मज़ा लेते देख रहा था.
"नही, भाभी, म-माँ कसम! मैं सच ब-बोल रहा हूँ." किशन बोला.
बल्ब की धीमी रोशनी मे मेरा गोरा अध-नंगा शरीर किशन सामने था और वह मेरी जवानी को आंखों से पीये जा रहा था. मैं अपने पति के साथ चुदाई ना कर पाने की वजह से बहुत चुदासी हुई पड़ी थी. मेरा मन डोल गया. जी हुआ अपने देवर को उसके कमरे मे ले जाकर अपने सारे जलवे दिखाऊं और फिर उससे चुदाई करवाऊं. पर मैने जल्दबाजी करना उचित नही समझा. दिल पर पत्थर रखकर मैने कहा, "देवरजी, इस बारे मे हम कल बात करेंगे. जाओ, पानी पीकर सो जाओ!"
किशन छुटते ही रसोई की तरफ़ भागा. मैं अपने सास-ससुर के कमरे मे गयी. सोचा सासुमाँ के साथ ही सो जाऊंगी.
दरवाज़ा खट्खटाने पर सासुमाँ ने दरवाज़ा खोला. मुझे देखकर बोली, "क्या हुआ, बहु? और तु अध-नंगी क्यों है?"
मैने कहा, "माँ, आपके बेटे बहुत ज़िद कर रहे थे, तो मैने सोचा आपके कमरे मे सो जाऊं."
सासुमाँ हंसी और बोली, "अच्छा किया तु आई. बलराम को तुने बहुत चढ़ा दी है क्या?"
"हाँ. वह खुद चल पाते तो मुझे पटक कर अपनी दस दिनो की हवस मिटा लेते!"
सासुमाँ बिस्तर पर लेट गई. मेरे पास ब्लाउज़ और ब्रा तो था नही, पर मैने साड़ी पहनी शुरु की तो सासुमाँ बोली, "अरे बहु, तु साड़ी क्यों पहने लगी? आज ऐसे ही सो जा. तुझे तो सोनपुर मे मैने पूरा नंगा देखा है."
वैसे तो सासुमाँ और मैने सोनपुर मे एक दूसरे के सामने चुदाई भी की थी, पर मुझे थोड़ी शरम सी लगने लगी. मैने बत्ती बुझा दी और अपनी साड़ी एक कुर्सी पर रखकर उनके बगल मे एक चादर ओढ़कर लेट गई.
कुछ देर बाद सासुमाँ बोली, "बहु, सोनपुर की बहुत याद आ रही है. हम सबने बहुत मज़े लिये थे वहाँ."
मैं बोली, "माँ, विश्वनाथजी कह रहे थे उन्होने आपके साथ ट्रेन मे भी किया था?"
"हाँ रे!" सासुमाँ एक खुशी की सांस छोड़ती हुई बोली. "मेरे मैके जाते समय ट्रेन लगभग खाली ही थी. हम दोनो एक खाली कूपे मे बैठ थे. पहले तो विश्वनाथजी मेरी जांघों को सहलाने लगे, फिर मेरी चूचियों को दबाने लगे. मैने थोड़ा नखरा किया तो वह बोले, ’भाभीजी, आप कल रात चार-चार का लन्ड ली हैं. बस मुझे ही मौका नही मिला. कहो तो आपके पति को सब बता दूँ?’"
"फिर आपने क्या कहा?" मैने पूछा.
"सच बात तो यह थी कि मैं खुद उनसे चुदने को तैयार बैठी थी." सासुमाँ बोली, "मैने उन्हे अपनी चूचियां दबाने दी. कुछ देर बाद, नीचे से मेरी साड़ी मे हाथ डालकर मेरी चूत मे उंगली करने लगे. मेरी चूत तो बहुत ही गीली हो गयी थी. मुझे बोले, ’चलो भाभीजी, तुम्हे टॉलेट मे ले जाकर चोदते हैं.’ मैं तो घबरा गई."
"फिर?"
"फिर क्या, विश्वनाथजी कोई सुनने वाले लोगों मे हैं क्या?" सासुमाँ बोली, "मुझे जबरन टॉलेट के पास ले गये. उधर कोई नही था. एक टॉलेट खोलकर पहले मुझे अन्दर घुसा दिये, फिर खुद घुस गये. दरवाज़ा बंद करके वह मेरे ब्लाउज़ के हुक खोलने लगे. मैने कहा कि ऐसे ही साड़ी उठाके कर लो, पर वह माने नही."
"आपको पूरा नंगा कर दिया?"
"हाँ रे. मेरी साड़ी, ब्लाउज़, पेटीकोट सब उतार दिया. फिर खुद भी पूरे नंगे हो गये. क्या मज़ा आ रहा था चलती ट्रेन मे उनके नंगे बदन से अपने नंगे बदन को चिपकाने मे! डर भी लग रहा था कि कोई आ न जाये, और डर की वजह से मज़ा दुगना हो गया था." सासुमाँ बोली. "और ओह! कैसे खूंटे की तरह खड़ा था उनका विशाल लन्ड! मैं तो नीचे बैठकर कुछ देर उनका लन्ड जी भर के चूसी. फिर उन्होने मुझे आगे की तरफ़ झुकाया और पीछे से मेरी चूत मे अपना मूसल घुसा कर चोदने लगे."
"बहुत मज़ा आया होगा आपको?"
"हाँ, बहु. कभी मौका मिले तो ट्रेन मे किसी से चुदवाके देखना." सासुमाँ बोली, "ट्रेन तेजी से चल रही थी और डिब्बा जोरों से हिल रहा था. ट्रेन की ताल पर विश्वनाथजी मेरे चूचियों को मसलते हुए मुझे पेले जा रहे थे. मैं तो न जाने कितनी बार झड़ी. आते समय मैं खुद ही विश्वनाथजी को बोली कि मुझे ट्रेन के टॉलेट मे ले जाकर चोदें."
हुम कुछ देर अंधेरे मे चुपचाप लेटे रहे. आंखों मे नींद नही थी. मैं अपनी नंगी चूचियों को दोनो हाथों से मसल रही थी.
अचानक, सासुमाँ ने अपना हाथ मेरे एक चूची पर रखा और बोली, "बहु, अपने हाथों से कभी चूची दबाने का मज़ा आता है?" और फिर मेरे हाथ हटाकर मेरे निप्पल को छेड़ने लगी. मैं गनगना उठी.
"बहु, बहुत चुदवाने का मन कर रहा है क्या?" सासुमाँ ने भारी आवाज़ मे पूछा. वह कभी मेरी एक चूची को कभी दूसरी चूची को मसल रही थी.
"हा, माँ." मैने जवाब दिया.
"मै भी बहुत चुदासी हूँ." वह बोली. वह मेरे बहुत करीब आ गयी थी.
अचानक मैने उनकी सांसों को अपने चेहरे पर पाया, और वह मेरे होठों को पीने लगी.
वीणा, औरत के होठों मे वह बात नही जो एक मर्द के होठों मे होता है, पर इस वक्त मेरी जो हालत थी, मुझे सब कुछ मंज़ूर था. मैं भी पूरा साथ देकर सासुमाँ के होंठ पीने लगी. मैने उनके सीने पर हाथ रखा तो देखा कि उन्होने पहले से ही अपनी ब्लाउज़ और ब्रा उतार दी थी. तुम्हारी मामीजी थोड़ी मोटी हो गयी हैं और उनकी चूचियां काफ़ी बड़ी बड़ी हैं. हम दोनो एक दूसरे की चूचियों को मसल कर मज़ा देने लगे.
फिर सासुमाँ ने अपनी बड़ी बड़ी चूचियों को एक एक करके मेरे मुंह मे ठूंसना शुरु किया. उनके मोटे मोटे निप्पलों को चूस चूसकर मैने उन्हे मज़ा दिया. फिर उन्होने मेरी जवान चूचियों को पिया.
"हाय बहु, क्या गोल, नरम चूचियां है तेरी!" सासुमाँ बोली, "तभी तो इन्हे पी पीकर तेरे ससुर का मन नही भरता!"
"माँ, आपकी चूचियां भी बहुत सुन्दर हैं." मैने कहा. "अपनी साड़ी उतारिये ना!"
सासुमाँ ने उठकर अपनी साड़ी उतार दी, फिर पेटीकोट भी उतारकर पूरी नंगी हो गयी. अंधेरे मे कुछ दिखाई नही दे रहा था. वह फिर मेरे ऊपर लेट गयी और मेरे पेटीकोट के नाड़े को खोल दी.
मैने पेटीकोट को पाँव से अलग कर दिया. अब हम दोनो सास-बहु पूरी तरह नंगे होकर एक दूसरे से लिपटे हुए थे. हमारे होंठ एक दूसरे की गहरी चुम्बन ले रहे थे और हमारे हाथ एक दूसरे की चूचियों को मसले जा रहे थे. सासुमाँ मेरे ऊपर लेटकर अपनी चूत से मेरी चूत को रगड़ रही थी. काफ़ी मज़ा आ रहा था और हम दोनो एक दो बार ऐसे ही झड़ गये.
फिर सासुमाँ उठी और मेरी चूत की तरफ़ घूम गई. अपने दोनो पैर मेरे दोनो तरफ़ रखकर उन्होने अपनी मोटी बुर मेरे मुंह पर रख दी और बोली, "बहु, ज़रा चाट दे मेरी चूत को. मैं भी तेरी चूत चाट देती हूँ." फिर झुक कर मेरी गरम, गीली चूत को चाटने लगी. किसी औरत के साथ मैने कभी 69 नही किया था, पर मुझे बहुत मज़ा आया.
मेरी जीभ जैसे सासुमाँ की बुर मे गयी वह कराह उठी. "आह!! ऊम्म!! बहु, बहुत अच्छा चाट रही है. पहले भी चाटी है क्या किसी की चूत?"
"नही माँ." मैने कहा.
"तो सीख ले. काफ़ी मज़ा आता है औरतों के साथ जवानी का खेल खेलने मे भी." सासुमाँ बोली, "मैं तो बचपन से अपनी छोटी बहन से साथ कर रही हूँ. मुझे जवान लड़कियाँ अच्छी लगती हैं चूसने चाटने के लिये. गुलाबी जल्दी से लाईन पर आ जाये तो मैं उसकी चूचियां और चूत चूसकर खाऊंगी. हाय बहु, तेरी चूत कितनी स्वादिष्ट है! आह!! और अच्छे से चाट, बहु!"
"हाय माँ, मुझे भी बहुत मज़ा आ रहा है!" मैने कहा, "उम्म!!"
कुछ देर बाद सासुमाँ बोली, "बहु, पूरा मज़ा नही आ रहा. जा रसोई मे देख, लंबे बैंगन होंगे. दो मझले आकर के बैंगन ले आ."
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