दोस्तो, मेरा नाम क्या है या है भी कि नहीं, इससे कुछ फ़र्क पड़ता !
किस्सा क्या है यह ज्यादा मायने रखता है। प्रेम किसी को भी किसी से भी हो सकता है, और जब हो जाये तो दुनिया रंगीन, जिन्दगी हसीन लगने लगती है, यह सिर्फ़ सुना था पर महसूस नहीं हुआ था। मैंने पहले भी यौन सुख तो अकसर भोगा था पर प्रेम के बारे में अनजान था।
कॉलेज में लड़कियों से दोस्ती थी, यौन संबध भी हुए, पर प्यार कभी नहीं हुआ।
बात आज से तीन साल पहले की है जब मैं पानी साफ़ करने वाली यंत्र बेचने वाली कंपनी में नौकरी करता था भुवनेश्वर में। उस समय मेरी उम्र सत्ताईस साल थी, शरीर स्वस्थ रखने के लिये मैं जिम जाया करता था वैसे आज भी यह आदत बरकारार है।
ऐसे नौकरी से तो आप परिचित होगें ही, मुझे लोगो के घर घर जाना होता था और उन्हें हमारे उत्पादों के बारे में जानकारी देनी होती थी और बेचने होते थे। नौकरी करते करते मैं उडिया भाषा सीख गया था, फ़र्राटे से बोल लेता था। वैसे मैं रहने वाला रांची का हूँ।
मैं रोज अपने घर से सुबह नौ बजे निकलता था और आफ़िस साढ़े नौ बजे हाजरी लगा कर वहाँ से अपना बैग लेकर अपने हीरो होण्डा पर लोगों के घर चल पड़ता था।
उस दिन मैं वहाँ के पॉश कहे जाने वाले इलाके में जाने को निकला था इसलिये अच्छे कपड़े और खुशबू लगा कर निकला था।
वहाँ एक घर के नजदीक बाइक खडी कर मैंने आठ दस घरों में पैदल ही जाने का निश्चय किया।
दो घरों में घूम कर मैंने एक यंत्र बेच दिया फ़िर तीसरे घर की ओर चल पड़ा। सूर्यदेव पूरे दम से जैसे आग ही बरसा रहे थे, मैं पसीने से तरबतर हो चुका था, गेट पर दरबान था, मैंने उसे अपना कार्ड दिया और कहा कि घर में किसी व्यक्ति को दे आए।
कुछ देर में उसने आकर कहा- मालकिन ने आपको अंदर बुलाया है।
अंदर जाने पर देखा कि एक 30-32 साल की महिला सोफ़े पर बैठी थी, बिल्कुल गोरी, सफ़ेद कमीज पर छोटे छोटे फ़ूल बने थे और नीले रंग की सलवार, कद करीब 5'5" का, भरा-पूरा बदन, कोमल से होंठ जिन्हें ऊपर वाले ने ही रंग कर भेजा था। उन्हें देख कर ही उस गर्मी में सर्दी का एहसास होने लगा था। शायद ऊपर वाले ने पूरी तल्लीनता से उन्हें तराशा था। मुझे देखकर उन्होंने अंदर बुलाया, मेरा चेहरा देखकर उन्होने कहा- आप तो पसीने से तर हो ! मैं कुछ पीने को देती हूँ।
मैंने धन्यवाद कहा।
वे झट से दो ग्लास शर्बत ले आई और मैं एक पी गया तो उन्होंने दूसरा भी दे दिया और कहा- दोनों आपके लिए ही हैं।
लगा जान में जान आई, मैंने फ़िर धन्यवाद दिया।
मन में ख्याल आया कि खूबसूरत शरीर में एक खूबसूरत दिल भी है।
मैंने अपना काम किया और उनसे ऑर्डर भी ले लिया। उनका नाम पता चला- प्रियंका ! तीन साल हुए शादी को, पति विदेश रहते हैं, एक बूढ़ी सास है जिसके चलते वो अपने पति के साथ नहीं रह पा रहीं है, सास कुछ दिनों के लिये बेटी के घर गई है।
मैं ऑर्डर शाम को पूरा करने की बात कह वहाँ से फ़ारिग हुआ। उनसे मिल कर अच्छा लगा।
शाम को पांच बजे टेक्निकल लड़के के साथ दोनों घरों में यन्त्र लगाने गया, पहले घर में लगाने के बाद इनके घर में गया, वो कहीं जाने की तैयारी में थी, सजी-धजी सी एक खूबसूरत साडी में।
मुझे देख कर मुस्कुराई, मैंने लड़के को काम पर लगा दिया।
हम बैठकर बातें करने लगे। उन्होंने मुझसे मेरे घर परिवार के बारे में पूछा तो मैंने बताया कि मैं रांची का हूँ।
तो उन्हें आश्चर्य हुआ कि मैं इतनी अच्छी उडिया कैसे बोल लेता हूँ।
उन्होने पूछा- शाम को काम खत्म करने के बाद क्या करते हो? दोस्त कौन कौन हैं? कोई गर्लफ़्रेंड है या नहीं ? वगैरह !
अब हम कुछ खुल चले थे। मैंने कहा- शाम को काम के बाद घर जा कर नहा कर मैं एक दोस्त के घर चला जाता हूँ जो यहीं का रहने वाला है, वहाँ गप-शप कर मैं वापस घर आ जाता हूँ क्योंकि मैं रात का खाना खुद पकाना पसंद करता हूँ, गर्लफ़्रेड नहीं है।
उन्होने कहा- मैं बोर हो रही थी तो अभी कहीं घूमने जा रही थी ! आपको अगर कोई काम ना हो तो साथ चलो।
मैंने कहा- मैं घर जा कर नहा कर और कपड़े बदलकर आता हूँ !
पर उन्होंने कहा- आप यहीं नहा लीज़िए, मैंने अपने पति के लिये कुछ नये कपड़े खरीदे थे, वो पहन लीजिए।
मैंने मना नहीं किया पर इन्तजार करने लगा कि वह लड़का यंत्र लगा कर चला जाए।
वो चला गया और मैं तैयार होने चला गया।
मैं नहाकर निकला तो देखा कि प्रियंका साथ वाले कमरे में कपड़े लिये खड़ी थी, मैं तौलिये मैं था, थोड़ा सकुचाया तो उन्होंने कहा- आप ये कपड़े पहन लीजिए, फ़िट आएँगे !
और वहीं खड़ी रही।
मैंने कपड़े हाथ में लेकर कहा- जी अगर आप… !!
वो झेंप गई और यह कहते हुए चली गई- मैं चाय बनाती हूँ।
मैं तैयार हो गया और ड्राईंग रूम में आ गया, चाय पी और चलने को हुए तो उन्होंने पास के दराज से सेंट निकाल कर मेरे कपड़ों पर छिड़क दिया और मुस्कुरा दी।
और हम चल पड़े।
मैं समझ रहा था कि शायद मुझे इस शहर में मौका मिलने वाला है।
हम बाहर उनकी कार में गये, गाड़ी मैं ही चला रहा था। मार्केट में घूमने के बाद हम पार्क चले गये जहाँ कई जोड़े हाथ में हाथ डाले तो कुछ एक-दूसरे को चूम रहे थे।
उन्हें देखकर मुझे कुछ होने लगा था, मैंने कहा- चलिये कहीं बैठते हैं।
हम वहीं घास पर बैठ गये तो पीछे से पुच पुच की आवाजें आने लगी। देखा तो एक जोड़ा झाड़ियों में चूमा-चाटी करने में मस्त था।
हमने एक दूसरे को देखा, अब आँखों ही आँखों में बातें होने लगी। उन्होंने मेरे हाथ पर अपनी हाथ रख दिया मैंने भी उनके हाथ को धीरे से दबाया, अब हम दोनों मस्त हो रहे थे।
मुझे लगने लगा कि क्या यह मस्त चीज मेरे ही लिये है? अगर हाँ तो ईश्वर का शुक्रिया।
इसी तरह हाथ दबाते हुए सहलाते हुए आधा घण्टा से ऊपर हो गया तो कहने लगी- चलिये, अब घर भी जाना है।
मैं अपने किस्मत को कोसते हुए चल पड़ा कि शायद मुझे ही पहल करनी चाहिए थी।
हमने एक दूसरे को देखा, अब आँखों ही आँखों में बातें होने लगी। उन्होंने मेरे हाथ पर अपनी हाथ रख दिया मैंने भी उनके हाथ को धीरे से दबाया, अब हम दोनों मस्त हो रहे थे।
मुझे लगने लगा कि क्या यह मस्त चीज मेरे ही लिये है? अगर हाँ तो ईश्वर का शुक्रिया।
इसी तरह हाथ दबाते हुए सहलाते हुए आधा घण्टा से ऊपर हो गया तो कहने लगी- चलिये, अब घर भी जाना है।
मैं अपने किस्मत को कोसते हुए चल पड़ा कि शायद मुझे ही पहल करनी चाहिए थी।
हम गाड़ी में बैठे और चल पड़े। रास्ते में मैंने फ़िर उनका हाथ पकड़ा वो कुछ नहीं बोली। मैं सहलाने लगा तो उन्होंने मेरे कंधे पर सर रख दिया। मैं उनके होंठों को छूने लगा, सुनसान जगह देख कर गाड़ी रोक दी और उनके होंठों को चूमने लगा, वो भी पूरा साथ देने लगीं। हम दोनों एक दूसरे के होठों को अच्छी तरह चूसने लगे तो मैंने उनके कमर पर हाथ रख दिया और कमर को सहलाने लगा, उनकी नाभि में उंगली से गुदगुदाने लगा। नंगी कमर को सहलाते हुए बड़ा मजा आ रहा था।
अब लगा कि वो भी मेरे ही तरह उत्तेजित हो गई थी। अचानक उन्होंने कहा- चलिए, गाड़ी चलाइए मेरे पति घर पर फ़ोन करने वाले हैं।
तब आज की तरह मोबाईल आम नहीं थे।
मैंने गाड़ी चालू की तो उन्होंने कहा- आप अपनी पैंट की जिप खोल दीजिए और फ़िर गाड़ी चलाइए।
मुझे झटका सा लगा, मैंने वैसे ही किया तो उन्होंने मेरी पैन्ट में हाथ डाल दिया अण्डरवीयर नीचे कर कर लण्ड को मुट्ठी में दबा कर बाहर निकाल लिया और गजब की नजरों से मुझे देखने लगी।
मैंने फ़िर चूमना चाहा तो मना करते हुए बोली- आप अपना काम कीजिए, मैं अपना कर रही हूँ।
मैंने मुस्कुराकर कहा- तब आपका काम भी देखता हूँ कि कितने अच्छे से करती हैं !
मेरा कहना था कि झट से झुककर मेरे लण्ड पर जीभ फ़ेरने लगी जैसे वो कोई आईसक्रीम या कुल्फ़ी हो, हर बार जीभ फ़ेर कर वो मुझे देखने लगती थी। आनन्द से मेरी आँखें बंद हो रहीं थीं, डर था कि गाड़ी ठोक ना दूँ।
अचानक उन्होंने मेरे लण्ड को मुँह में लेकर चूसना शुरु कर दिया और अण्डकोषों पर उंगलियाँ फ़िराने लगी, लण्ड पर मुँह से दबाव देने लगी और ऊपर-नीचे कर के चूसने लगी।
सच कहता हूँ दोस्तो, कभी किसी ने मेरे लण्ड को ऐसे नहीं चूसा था, जी चाह रहा था उन्हें गाड़ी में ही पटक दूँ और चोद दूँ ! पर मैं इस आनन्द को भी नहीं खोना चाहता था, किसी बच्चे की तरह दिल सब कुछ चाह रहा था।
वो मेरे लण्ड को चूसे ही जा रही थी और हाथों से हिला भी रही थी।
मैं पूरा मस्त हो गया था और लग रहा था कि निकलने ही वाला है तो मैंने कहा- मेरा शायद निकलने वाला है !
पर वो कुछ नहीं बोलीं, पर हाथों और मुँह का काम तेज जरूर हो गया।
मैंने सड़क के किनारे गाड़ी रोक दी, मेरी आँखें बंद हो गई और मेरे लण्ड ने उनके मुँह में फ़व्वारे छोड़ने शुरु कर दिए और वो मेरे लण्ड को निचोड़ते हुए मेरे सारे वीर्य को गटकने लगी जैसे और कभी उन्हें पानी भी नसीब नहीं होगा।
अच्छी तरह चूसने के बाद उन्होंने मेरे लण्ड पर एक चुम्बन किया और लण्ड को सहलाते हुए बोली- क्यों कैसा लगा मेरा काम?
मैंने कहा- मेरे से अच्छा !
और उन्हें चूम लिया तो उन्होंने कहा- और भी बेहतर कर सकती हूँ अगर आप रात मेरे घर पर रूक जाएँ तो !
मैंने कहा- कहें तो कभी ना जाऊँ?
और गाड़ी चालू कर उनके घर की ओर चल दिया, मैंने कहा- मैं अपने घर जाकर मकान मालिक को कह आता हूँ कि रात घर नहीं आऊँगा।
तो उन्होंने कहा- अपना सामान ले आना और कह देना कि हफ़्ते भर के लिये बाहर जा रहा हूँ ! और कार ले जाना !
मैं मुस्कुरा दिया और कार पर घर की ओर चल दिया। सारे रास्ते रात को होने वाली चुदाई के बारे में सोच सोच कर मेरा लण्ड खड़ा होकर परेशान कर रहा था। सोच रहा था उनकी चूत कैसी होगी, गुलाब की पखुड़ियों जैसी, खुशबूदार, नर्म नर्म जाँघों में बालों में घिरी होगी या बिन बालों के, स्वाद कैसा होगा? उनकी चूचियाँ कैसी होंगी, दबाने से कैसे लगेगा, क्या रात में भी मेरे लण्ड को वैसे ही चूसेंगी और भी बहुत कुछ।
वैसे ही मैं अपना सामान ले आया, दरवाजा उन्होंने ही खोला, कपड़े बदले जा चुके थे और वो एक सफ़ेद स्लैक्स और गुलाबी कुर्ते में थी, ऊपर वाले ने उन्हें चीज ही ऐसी बनाया था कि शायद चीथड़ों में भी मुर्दों को जिंदा कर दे।
मैंने अपना बैग रखा और उन्हें गले लगा कर चूमने लगा, वो भी साथ देने लगी, हमने एक दूसरे को खूब चूमा। मैंने अपने हाथ उनकी गोल गोल चूचियों पर रख दिये, उन्होंने होंठों से हट कर मेरे माथे को चूमा और मुस्कुरा कर कहा- तुम नहा लो, तब तक खाना बन जाता है, खा-पी कर बेडरूम में चल कर करेंगे, सब्र कीजिये ! ना रात भागी जा रही है न मैं !
मैं भी उनके होंठों पर एक चुम्मी देकर नहाने चला गया।
हम दोनों ने साथ खाना खाया, खाने का स्वाद गजब का था, अंत में गाजर का हलवा भी परोसा गया।
मैंने कहा- आप तो बहुत अच्छ खाना बना लेती हैं !
इस पर उन्होंने कहा- मैंने होटल मैनेजमेंट किया हुआ है, तीन साल एक बड़े ही नामचीन होटल में काम भी किया है, पति को मेरा काम करना पसंद नहीं था सो छोड़ना पड़ा !
कहते-कहते उदास हो गई, मैंने उनके कन्धे पर हाथ रखा तो उन्होंने मेरा हाथ चूम लिया, होंठों पे मुस्कान पर आँख भरी थी मानो और छेड़ा तो सैलाब !
मैं भी मुस्कुरा दिया।
हम दोनों ने साथ खाना खाया, खाने का स्वाद गजब का था, अंत में गाजर का हलवा भी परोसा गया।
मैंने कहा- आप तो बहुत अच्छ खाना बना लेती हैं !
इस पर उन्होंने कहा- मैंने होटल मैनेजमेंट किया हुआ है, तीन साल एक बड़े ही नामचीन होटल में काम भी किया है, पति को मेरा काम करना पसंद नहीं था सो छोड़ना पड़ा !
कहते-कहते उदास हो गई, मैंने उनके कन्धे पर हाथ रखा तो उन्होंने मेरा हाथ चूम लिया, होंठों पे मुस्कान पर आँख भरी थी मानो और छेड़ा तो सैलाब !
मैं भी मुस्कुरा दिया।
खाने के बाद हमने साथ साथ सफ़ाई की और सोने के कमरे में चले गये।
तब तक करीब दस बज रहे होंगे, उन्होंने पूछा- बीयर पीते हो?
मैंने कहा- हाँ ! कभी कभार दोस्तों के साथ !
तो उन्होंने कहा- दो बोतल ले आओ तो ठीक रहेगा क्योंकि मर्द बीयर पीने के बाद घोड़े की तरह देर तक चुदाई कर सकता है।
मैं गया और जाकर तीन बोतल ले आया क्योंकि रात में देर तक कार्यक्रम चलना था काफ़ी बार शायद।
उन्होंने कमरे का माहौल बड़ा ही सुहावना बना दिया था, मन्द मन्द सी रोशनी, चारों ओर खुशबू फ़ैली हुई और उस रोशनी में उनका सारे बदन का रेखाचित्र सा खिंचा दिख रहा था, माहौल देख कर मैं बेकाबू होने लगा तो उन्होंने रोक दिया, कहा- अब हम एक दूसरे को आप-आप नहीं कहेंगे, तुम और अन्य शब्दों से सम्बोधित करेंगे।
मैंने हामी भरी और उन्हें (उसे) बिस्तर पर लिटा कर उसके होंठों पर अपने होंठ रख दिये, एक हाथ उसके कमर को सहला रहा था और दूसरा उसके सर को पीछे से सहारा दिये हुए था। सहलाते हुए मैंने उसकी चूत को कपरों के ऊपर से छुआ, वाह ! फ़ूली हुई, गर्म, थोड़ी नम, शायद पानी छोड़ना शुरू हो गया था।
मैं चूत की दरार में उंगली से सहला रहा था, तो उसने कहा- चलो एक खेल खेलें ! ताश के पत्तों से जिसे तीन पत्ती या फ़लैश भी कह्ते हैं, साथ में बीयर होगी, एक एक बाजी हारने वाले को अपने बदन से एक एक कपड़ा उतारना पड़ेगा और एक एक ग्लास बीयर भी पीनी पड़ेगी।
मैं तैयार हो गया और खेल शुरू ! पास में दोनों के लिये बीयर के ग्लास भी थे, चखने के तौर पर साथ में कुछ फ़ल थे ही।
खेल शुरू हुआ, पहली बाजी उसने ही जीती, उसके चेहरे पर हँसी आ गई और मैंने अपना कमीज उतार दिया, एक ग्लास गटक गया और एक सेब को काट खाया।
उसने झट कहा- अब उस सेब को मेरे मुँह में अपने मुँह से ही खिलाओ !
मैंने वैसे ही किया और उसने मेरे होंठ काट लिये।
दूसरी बाजी चली और फ़िर मैं हार गया, मैंने अपनी पैंट खोल दी, एक और ग्लास पी गया, मैं जितना उसे नंगा देखना चाहता था, किस्मत उतना ही तड़पा रही थी।
तीसरी बाजी चली और इस बार किस्मत मेहरबान हुई, मैं जीता, तो उसने पहले तो अपना ग्लास उठाया और चुस्की लेते हुए पीने लगी और बिना पलक झपकाये मुझे देखने लगी।
मैं सोच रहा था कि क्या उतारेगी, चेहरे पे हल्की मुस्कान लिये उसने आधा ग्लास ही खत्म किया और अपना कुर्ते को ऊपर उठा कर खोल दिया।
क्या नजारा था !
बिल्कुल गोरे बदन पर बड़ी-बड़ी चूचियों को एक काले रंग की ब्रा संभाले हुए थी, किसी अप्सरा को भी मात दे देने वाला बदन !
गले में उसके चेन थी जो दोनों चूचियों के बीच में पड़ी हुई थी। कमर थी कि लग रहा था कि बरसों की मेहनत से तराशी हुई हो।
मैंने हाथ बढाया और उसकी चूचियों को हल्के से दबाया। सच कहता हूँ, लग रहा था जैसे रुई पर हाथ फ़ेर रहा हूँ।
उसने भी मेरे लण्ड को धीरे से दबाया और कहा- अभी काफ़ी कपड़े बाकी हैं !
मैंने ग्लास की ओर इशारा किया, वो बाकी पी गई, मेरे होठों के सामने आई और मैंने जैसे ही मुँह खोला, अपने मुँह से मेरे मुँह में बियर डाल दी।
मैं हँसा।
अगली बाजी डाली, मैं जीता, उसने अपनी स्लैक्स उतार दी।
अब तो मुझे संयम बरतना मुश्किल लग रहा था, लण्ड था कि अन्डरवीयर फ़ाड़ कर बाहर निकलने को बेताब था।
मैंने उसे दबाया तो थोड़ी राहत महसूस हुई।
नज़र तो उसके बदन पर ही थी, क्या जाँघें थी ! उफ़्फ़ ! कयामत ! गोरी-गोरी, चिकनी, चमकीली और उस पर काले रंग की पैन्टी, चूत की दरार साफ़ दिख रही थी।
मैंने वहाँ छुआ तो हल्का गीला गीला सा मह्सूस हुआ। मैंने अपनी उँगली को सूंघा, और उसकी ओर देखते हुए मैंने उँगली मुँह में रख ली।
उंगली को जीभ से चाटने लगा, उसने एक ग्लास भरा और इस बार एक ही दफ़ा पूरा का पूरा ग्लास पी गई।
अगली बाजी हुई तो फ़िर वो हार गई, उसने कहा- मेरे सारे कपड़े उतर रहे हैं पर तुम्हारे नहीं !
मैंने कहा- गाड़ी में तुमने मेरे लण्ड से तो खेल लिया तो अब किस्मत मुझे मौका दे रही है !
उसने अपनी ब्रा उतार दी।
मुझसे नहीं रहा गया, मैंने कहा- भाड़ में गया यह खेल ! अब असली पर आ जाता हूँ।
उसने कहा- मेरा भी यही ख्याल है, पर बीयर तो पी जाओ !
मैंने बोतल मुँह से लगाई और पूरी बोतल पी गया और उसके ऊपर टूट पड़ा।
बिस्तर पर लेटे लेटे हम गुत्थम-गुत्था हो गये और एक दूसरे को कसकर पकड़ कर होंठों से होंठ मिला कर एक दूसरे के होंठों का स्वाद लेने लगे।
न जाने हम दोनों कब के प्यासे थे कि बस एक दूसरे के होंठों को चूसे जा रहे थे। वो मेरे दोनों होंठों को चूस रही थी, जीभ से जीभ लड़ा रही थी, मैं उसकी चूचियों को दबा रहा था, होंठों से उतर कर मैं उसकी गर्दन को चूमने लगा और गले पर जीभ फ़िराने लगा।
उसकी पसीने और सेंट की मिली-जुली खुशबू मुझे पागल कर रही थी।
मैं उसके कानों को दाँत से दबाने लगा, वो मस्ती में सराबोर थी, उसने पैर फ़ैला लिये थे, मैं उसके दोनों टांगों के बीच में उसके ऊपर लेट कर उसकी चूचियों को दबा रहा था और उसे चूम रहा था। मैं उसकी चूत के ऊपर अपने लण्ड को अन्डरवियर से रगड़ रहा था, वो मस्ती की सिसकारियाँ ले रही थी।
हम दोनों की आँख़ें बंद हो रही थे, मेरा भी लण्ड लोहे की रॉड बन गया था, उसने ख़ुद ही अपने हाथों से मेरे अण्डवीयर को उतार दिया और लण्ड को अपने उंगलियों से सहलाने लगी। लण्ड के ऊपर के गुलाबी भाग को सहलाने से मेरी भी हालत एक भूख़े शेर की सी हो गई, मैं बस उसे चोद देना चाह रहा था।
मैंने अपने ख़ड़े लण्ड को उसकी चूत पर जैसे ही भिड़ाया उसने मुझे रोक दिया, कहा- पहले लण्ड का स्वाद तो चख़ लूँ।
मेरा भी मन उसकी चूत को चाटने का हुआ, मैं पीठ के बल लेट गया, मेरा लण्ड तो पहले से ही तैयार था, वो मेरे लण्ड को निहार रही थी।
मैंने पूछा- क्या हुआ?
तो कहने लगी- मन कर रहा है कि ख़ा जाऊँ ! पर इसके और भी काम हैं !
कह वह लण्ड पर जीभ फ़िराने लगी, क्या आनन्द आ रहा था। वो मेरे लण्ड को मुँह मे लेकर लॉलीपाप की तरह चूसने लगी, उसके मुँह का गर्म गर्म एहसास, उसके हाथों से लण्ड को सहलाना, मेरे लण्ड को मुँह से चोदना, बड़ा मजा आ रहा था।
मैं भी उसके सर को पकड़कर उसके मुँह में लण्ड पेले जा रहा था, वो भी मेरे लण्ड पर से अपने होंठों का दबाव कम नहीं कर रही थी।
मैं उसके मुँह मे ही झड़ जाना चाहता था पर उसने बीच में ही रोक दिया, मैं समझ गया कि मेरी बारी है।
मैं उसे बिस्तर के किनारे ले गया, दोनों टांगों को बिस्तर से नीचे झुला दिया, फ़र्श पर बैठकर मैंने उसकी चूत पर उंगली फ़िराना शुरु किया और दूसरे हाथ से उसकी चूचियों को सहलाने लगा। मैं अपने होंठों से उसके चूत की पंख़ुड़ियों को सहलाने लगा, तो उसने सिसकारियाँ लेनी शुरु कर दी।
मैं भी जीभ से उसके चूत को चाटने लगा, एक उंगली से उसके छेद के ऊपर के भाग(क्लिट) को सहलाने लगा और जीभ को छेद में घुसाकर चोदने लगा, वो भी अपनी गाण्ड उचकाकर साथ देने लगी। मैं जीभ से ही चोदे जा रहा था, वो जोर जोर से सिसकारियाँ ले रही थी।
उसकी चूत बेहद गीली हो गई थी, उसकी चूत की ख़ुशबू मुझे मदहोश कर रही थी, मैं भी बड़े मन से उसके चूत को जीभ से चोदे जा रहा था। उसने अपनी टांगों से मेरा सर दबा दिया, मैं उसकी भग्नासा को हिलाये जा रहा था और जीभ से चाटे जा रहा था, वो बड़े जोर से स्ख़लित हुई।
मैं उठ ख़ड़ा हुआ कि अब कुछ देर तो वो कुछ नहीं करेगी, पर वो झट घुटनों के बल आकर मेरे लण्ड़ पर टूट पड़ी, मुँह मे लेकर जोर जोर से चूसने लगी जैसे मैं कहीं भागा जा रहा था।
उसका मुँह लगाना था कि मेरा लण्ड फ़िर रॉड बन गया, उसने मुझे बिस्तर पर लेटने का इशारा किया, मैं लेट गया और वो मेरे ऊपर आ गई और लण्ड को अपने चूत पर रगड़ने लगी और धीरे धीरे लण्ड पर बैठ कर उसे अपने चूत में घुसाने लगी, उसे दर्द हो रहा था, मैं भी कसाव महसूस कर रहा था। गर्मागर्म चूत का कसाव, पूरा लण्ड उसकी चूत में समा गया और वो मेरे होंठों को चूसने के लिये मेरे ऊपर लेट गई और धीरे धीरे गाण्ड उचका-उचका कर चुदवा रही थी।
मैं भी उसकी कमर को पकड़ कर नीचे से लण्ड को उसकी चूत में चोद रहा था।
क्या अनुभव था ! अदभुत ! ऐसे धीरे धीरे चोदने में मजा आ रहा था, पूरा लण्ड उसकी चूत के रस से सराबोर था, मेरी जांघों से उसकी गाण्ड के टकराने की आवाजों से सारा कमरा गूँज रहा था, वो धीरे धीरे तेज होने लगी, मैं भी तेज होने लगा, वो कराहने लगी तो मैं पागल हो उठा।
उसने मेरे होंठों को चूसना बंद कर दिया और सीधे हो कर चुदाई का आनन्द लेने लगी, उसकी आँख़ें बंद थी, अपने बालों को पकड़ कर वो उछ्ल रही थी, उसे चुदवाता देख़ मैं भी अपने चरम की ओर बढ़ने लगा। लगा कि मेरा लण्ड फ़ूट पड़ेगा, मैं भी नीचे से उसे कस-कस कर धक्के लगा रहा था, वो ऊऊऊउह्ह्ह्ह आ…आ……आ……ह की आवाजों स्ख़लित हुई और मेरा भी तापमान बढ़ाने लगी।
मैंने कहा- मैं खत्म होने वाला हूँ तो वो झट उतर गई और मेरे लण्ड को अपने होंठों में ले लिया।
मैं घुटनों पर आ गया और वो पेट के बल लेट कर लण्ड को चूसने लगी।
मैंने कई फ़व्वारे उसके मुँह में छोड़े और उसने सारा का सारा पी लिया, वीर्य पीने के बाद उसने बड़े प्यार से मेरे लण्ड को चाट कर साफ़ किया और मैंने एक जबरदस्त चुम्बन उसके होंठों को किया।
हम उसी हालत में रात को सो गये, सवेरे साथ नहाये, उसकी गाड़ी में हाई-वे पर चुदाई की और बाद में मैंने बिन शादी के हनीमून भी मनाया, हम कई जगह साथ घूमने गये।
किस्सा क्या है यह ज्यादा मायने रखता है। प्रेम किसी को भी किसी से भी हो सकता है, और जब हो जाये तो दुनिया रंगीन, जिन्दगी हसीन लगने लगती है, यह सिर्फ़ सुना था पर महसूस नहीं हुआ था। मैंने पहले भी यौन सुख तो अकसर भोगा था पर प्रेम के बारे में अनजान था।
कॉलेज में लड़कियों से दोस्ती थी, यौन संबध भी हुए, पर प्यार कभी नहीं हुआ।
बात आज से तीन साल पहले की है जब मैं पानी साफ़ करने वाली यंत्र बेचने वाली कंपनी में नौकरी करता था भुवनेश्वर में। उस समय मेरी उम्र सत्ताईस साल थी, शरीर स्वस्थ रखने के लिये मैं जिम जाया करता था वैसे आज भी यह आदत बरकारार है।
ऐसे नौकरी से तो आप परिचित होगें ही, मुझे लोगो के घर घर जाना होता था और उन्हें हमारे उत्पादों के बारे में जानकारी देनी होती थी और बेचने होते थे। नौकरी करते करते मैं उडिया भाषा सीख गया था, फ़र्राटे से बोल लेता था। वैसे मैं रहने वाला रांची का हूँ।
मैं रोज अपने घर से सुबह नौ बजे निकलता था और आफ़िस साढ़े नौ बजे हाजरी लगा कर वहाँ से अपना बैग लेकर अपने हीरो होण्डा पर लोगों के घर चल पड़ता था।
उस दिन मैं वहाँ के पॉश कहे जाने वाले इलाके में जाने को निकला था इसलिये अच्छे कपड़े और खुशबू लगा कर निकला था।
वहाँ एक घर के नजदीक बाइक खडी कर मैंने आठ दस घरों में पैदल ही जाने का निश्चय किया।
दो घरों में घूम कर मैंने एक यंत्र बेच दिया फ़िर तीसरे घर की ओर चल पड़ा। सूर्यदेव पूरे दम से जैसे आग ही बरसा रहे थे, मैं पसीने से तरबतर हो चुका था, गेट पर दरबान था, मैंने उसे अपना कार्ड दिया और कहा कि घर में किसी व्यक्ति को दे आए।
कुछ देर में उसने आकर कहा- मालकिन ने आपको अंदर बुलाया है।
अंदर जाने पर देखा कि एक 30-32 साल की महिला सोफ़े पर बैठी थी, बिल्कुल गोरी, सफ़ेद कमीज पर छोटे छोटे फ़ूल बने थे और नीले रंग की सलवार, कद करीब 5'5" का, भरा-पूरा बदन, कोमल से होंठ जिन्हें ऊपर वाले ने ही रंग कर भेजा था। उन्हें देख कर ही उस गर्मी में सर्दी का एहसास होने लगा था। शायद ऊपर वाले ने पूरी तल्लीनता से उन्हें तराशा था। मुझे देखकर उन्होंने अंदर बुलाया, मेरा चेहरा देखकर उन्होने कहा- आप तो पसीने से तर हो ! मैं कुछ पीने को देती हूँ।
मैंने धन्यवाद कहा।
वे झट से दो ग्लास शर्बत ले आई और मैं एक पी गया तो उन्होंने दूसरा भी दे दिया और कहा- दोनों आपके लिए ही हैं।
लगा जान में जान आई, मैंने फ़िर धन्यवाद दिया।
मन में ख्याल आया कि खूबसूरत शरीर में एक खूबसूरत दिल भी है।
मैंने अपना काम किया और उनसे ऑर्डर भी ले लिया। उनका नाम पता चला- प्रियंका ! तीन साल हुए शादी को, पति विदेश रहते हैं, एक बूढ़ी सास है जिसके चलते वो अपने पति के साथ नहीं रह पा रहीं है, सास कुछ दिनों के लिये बेटी के घर गई है।
मैं ऑर्डर शाम को पूरा करने की बात कह वहाँ से फ़ारिग हुआ। उनसे मिल कर अच्छा लगा।
शाम को पांच बजे टेक्निकल लड़के के साथ दोनों घरों में यन्त्र लगाने गया, पहले घर में लगाने के बाद इनके घर में गया, वो कहीं जाने की तैयारी में थी, सजी-धजी सी एक खूबसूरत साडी में।
मुझे देख कर मुस्कुराई, मैंने लड़के को काम पर लगा दिया।
हम बैठकर बातें करने लगे। उन्होंने मुझसे मेरे घर परिवार के बारे में पूछा तो मैंने बताया कि मैं रांची का हूँ।
तो उन्हें आश्चर्य हुआ कि मैं इतनी अच्छी उडिया कैसे बोल लेता हूँ।
उन्होने पूछा- शाम को काम खत्म करने के बाद क्या करते हो? दोस्त कौन कौन हैं? कोई गर्लफ़्रेंड है या नहीं ? वगैरह !
अब हम कुछ खुल चले थे। मैंने कहा- शाम को काम के बाद घर जा कर नहा कर मैं एक दोस्त के घर चला जाता हूँ जो यहीं का रहने वाला है, वहाँ गप-शप कर मैं वापस घर आ जाता हूँ क्योंकि मैं रात का खाना खुद पकाना पसंद करता हूँ, गर्लफ़्रेड नहीं है।
उन्होने कहा- मैं बोर हो रही थी तो अभी कहीं घूमने जा रही थी ! आपको अगर कोई काम ना हो तो साथ चलो।
मैंने कहा- मैं घर जा कर नहा कर और कपड़े बदलकर आता हूँ !
पर उन्होंने कहा- आप यहीं नहा लीज़िए, मैंने अपने पति के लिये कुछ नये कपड़े खरीदे थे, वो पहन लीजिए।
मैंने मना नहीं किया पर इन्तजार करने लगा कि वह लड़का यंत्र लगा कर चला जाए।
वो चला गया और मैं तैयार होने चला गया।
मैं नहाकर निकला तो देखा कि प्रियंका साथ वाले कमरे में कपड़े लिये खड़ी थी, मैं तौलिये मैं था, थोड़ा सकुचाया तो उन्होंने कहा- आप ये कपड़े पहन लीजिए, फ़िट आएँगे !
और वहीं खड़ी रही।
मैंने कपड़े हाथ में लेकर कहा- जी अगर आप… !!
वो झेंप गई और यह कहते हुए चली गई- मैं चाय बनाती हूँ।
मैं तैयार हो गया और ड्राईंग रूम में आ गया, चाय पी और चलने को हुए तो उन्होंने पास के दराज से सेंट निकाल कर मेरे कपड़ों पर छिड़क दिया और मुस्कुरा दी।
और हम चल पड़े।
मैं समझ रहा था कि शायद मुझे इस शहर में मौका मिलने वाला है।
हम बाहर उनकी कार में गये, गाड़ी मैं ही चला रहा था। मार्केट में घूमने के बाद हम पार्क चले गये जहाँ कई जोड़े हाथ में हाथ डाले तो कुछ एक-दूसरे को चूम रहे थे।
उन्हें देखकर मुझे कुछ होने लगा था, मैंने कहा- चलिये कहीं बैठते हैं।
हम वहीं घास पर बैठ गये तो पीछे से पुच पुच की आवाजें आने लगी। देखा तो एक जोड़ा झाड़ियों में चूमा-चाटी करने में मस्त था।
हमने एक दूसरे को देखा, अब आँखों ही आँखों में बातें होने लगी। उन्होंने मेरे हाथ पर अपनी हाथ रख दिया मैंने भी उनके हाथ को धीरे से दबाया, अब हम दोनों मस्त हो रहे थे।
मुझे लगने लगा कि क्या यह मस्त चीज मेरे ही लिये है? अगर हाँ तो ईश्वर का शुक्रिया।
इसी तरह हाथ दबाते हुए सहलाते हुए आधा घण्टा से ऊपर हो गया तो कहने लगी- चलिये, अब घर भी जाना है।
मैं अपने किस्मत को कोसते हुए चल पड़ा कि शायद मुझे ही पहल करनी चाहिए थी।
हमने एक दूसरे को देखा, अब आँखों ही आँखों में बातें होने लगी। उन्होंने मेरे हाथ पर अपनी हाथ रख दिया मैंने भी उनके हाथ को धीरे से दबाया, अब हम दोनों मस्त हो रहे थे।
मुझे लगने लगा कि क्या यह मस्त चीज मेरे ही लिये है? अगर हाँ तो ईश्वर का शुक्रिया।
इसी तरह हाथ दबाते हुए सहलाते हुए आधा घण्टा से ऊपर हो गया तो कहने लगी- चलिये, अब घर भी जाना है।
मैं अपने किस्मत को कोसते हुए चल पड़ा कि शायद मुझे ही पहल करनी चाहिए थी।
हम गाड़ी में बैठे और चल पड़े। रास्ते में मैंने फ़िर उनका हाथ पकड़ा वो कुछ नहीं बोली। मैं सहलाने लगा तो उन्होंने मेरे कंधे पर सर रख दिया। मैं उनके होंठों को छूने लगा, सुनसान जगह देख कर गाड़ी रोक दी और उनके होंठों को चूमने लगा, वो भी पूरा साथ देने लगीं। हम दोनों एक दूसरे के होठों को अच्छी तरह चूसने लगे तो मैंने उनके कमर पर हाथ रख दिया और कमर को सहलाने लगा, उनकी नाभि में उंगली से गुदगुदाने लगा। नंगी कमर को सहलाते हुए बड़ा मजा आ रहा था।
अब लगा कि वो भी मेरे ही तरह उत्तेजित हो गई थी। अचानक उन्होंने कहा- चलिए, गाड़ी चलाइए मेरे पति घर पर फ़ोन करने वाले हैं।
तब आज की तरह मोबाईल आम नहीं थे।
मैंने गाड़ी चालू की तो उन्होंने कहा- आप अपनी पैंट की जिप खोल दीजिए और फ़िर गाड़ी चलाइए।
मुझे झटका सा लगा, मैंने वैसे ही किया तो उन्होंने मेरी पैन्ट में हाथ डाल दिया अण्डरवीयर नीचे कर कर लण्ड को मुट्ठी में दबा कर बाहर निकाल लिया और गजब की नजरों से मुझे देखने लगी।
मैंने फ़िर चूमना चाहा तो मना करते हुए बोली- आप अपना काम कीजिए, मैं अपना कर रही हूँ।
मैंने मुस्कुराकर कहा- तब आपका काम भी देखता हूँ कि कितने अच्छे से करती हैं !
मेरा कहना था कि झट से झुककर मेरे लण्ड पर जीभ फ़ेरने लगी जैसे वो कोई आईसक्रीम या कुल्फ़ी हो, हर बार जीभ फ़ेर कर वो मुझे देखने लगती थी। आनन्द से मेरी आँखें बंद हो रहीं थीं, डर था कि गाड़ी ठोक ना दूँ।
अचानक उन्होंने मेरे लण्ड को मुँह में लेकर चूसना शुरु कर दिया और अण्डकोषों पर उंगलियाँ फ़िराने लगी, लण्ड पर मुँह से दबाव देने लगी और ऊपर-नीचे कर के चूसने लगी।
सच कहता हूँ दोस्तो, कभी किसी ने मेरे लण्ड को ऐसे नहीं चूसा था, जी चाह रहा था उन्हें गाड़ी में ही पटक दूँ और चोद दूँ ! पर मैं इस आनन्द को भी नहीं खोना चाहता था, किसी बच्चे की तरह दिल सब कुछ चाह रहा था।
वो मेरे लण्ड को चूसे ही जा रही थी और हाथों से हिला भी रही थी।
मैं पूरा मस्त हो गया था और लग रहा था कि निकलने ही वाला है तो मैंने कहा- मेरा शायद निकलने वाला है !
पर वो कुछ नहीं बोलीं, पर हाथों और मुँह का काम तेज जरूर हो गया।
मैंने सड़क के किनारे गाड़ी रोक दी, मेरी आँखें बंद हो गई और मेरे लण्ड ने उनके मुँह में फ़व्वारे छोड़ने शुरु कर दिए और वो मेरे लण्ड को निचोड़ते हुए मेरे सारे वीर्य को गटकने लगी जैसे और कभी उन्हें पानी भी नसीब नहीं होगा।
अच्छी तरह चूसने के बाद उन्होंने मेरे लण्ड पर एक चुम्बन किया और लण्ड को सहलाते हुए बोली- क्यों कैसा लगा मेरा काम?
मैंने कहा- मेरे से अच्छा !
और उन्हें चूम लिया तो उन्होंने कहा- और भी बेहतर कर सकती हूँ अगर आप रात मेरे घर पर रूक जाएँ तो !
मैंने कहा- कहें तो कभी ना जाऊँ?
और गाड़ी चालू कर उनके घर की ओर चल दिया, मैंने कहा- मैं अपने घर जाकर मकान मालिक को कह आता हूँ कि रात घर नहीं आऊँगा।
तो उन्होंने कहा- अपना सामान ले आना और कह देना कि हफ़्ते भर के लिये बाहर जा रहा हूँ ! और कार ले जाना !
मैं मुस्कुरा दिया और कार पर घर की ओर चल दिया। सारे रास्ते रात को होने वाली चुदाई के बारे में सोच सोच कर मेरा लण्ड खड़ा होकर परेशान कर रहा था। सोच रहा था उनकी चूत कैसी होगी, गुलाब की पखुड़ियों जैसी, खुशबूदार, नर्म नर्म जाँघों में बालों में घिरी होगी या बिन बालों के, स्वाद कैसा होगा? उनकी चूचियाँ कैसी होंगी, दबाने से कैसे लगेगा, क्या रात में भी मेरे लण्ड को वैसे ही चूसेंगी और भी बहुत कुछ।
वैसे ही मैं अपना सामान ले आया, दरवाजा उन्होंने ही खोला, कपड़े बदले जा चुके थे और वो एक सफ़ेद स्लैक्स और गुलाबी कुर्ते में थी, ऊपर वाले ने उन्हें चीज ही ऐसी बनाया था कि शायद चीथड़ों में भी मुर्दों को जिंदा कर दे।
मैंने अपना बैग रखा और उन्हें गले लगा कर चूमने लगा, वो भी साथ देने लगी, हमने एक दूसरे को खूब चूमा। मैंने अपने हाथ उनकी गोल गोल चूचियों पर रख दिये, उन्होंने होंठों से हट कर मेरे माथे को चूमा और मुस्कुरा कर कहा- तुम नहा लो, तब तक खाना बन जाता है, खा-पी कर बेडरूम में चल कर करेंगे, सब्र कीजिये ! ना रात भागी जा रही है न मैं !
मैं भी उनके होंठों पर एक चुम्मी देकर नहाने चला गया।
हम दोनों ने साथ खाना खाया, खाने का स्वाद गजब का था, अंत में गाजर का हलवा भी परोसा गया।
मैंने कहा- आप तो बहुत अच्छ खाना बना लेती हैं !
इस पर उन्होंने कहा- मैंने होटल मैनेजमेंट किया हुआ है, तीन साल एक बड़े ही नामचीन होटल में काम भी किया है, पति को मेरा काम करना पसंद नहीं था सो छोड़ना पड़ा !
कहते-कहते उदास हो गई, मैंने उनके कन्धे पर हाथ रखा तो उन्होंने मेरा हाथ चूम लिया, होंठों पे मुस्कान पर आँख भरी थी मानो और छेड़ा तो सैलाब !
मैं भी मुस्कुरा दिया।
हम दोनों ने साथ खाना खाया, खाने का स्वाद गजब का था, अंत में गाजर का हलवा भी परोसा गया।
मैंने कहा- आप तो बहुत अच्छ खाना बना लेती हैं !
इस पर उन्होंने कहा- मैंने होटल मैनेजमेंट किया हुआ है, तीन साल एक बड़े ही नामचीन होटल में काम भी किया है, पति को मेरा काम करना पसंद नहीं था सो छोड़ना पड़ा !
कहते-कहते उदास हो गई, मैंने उनके कन्धे पर हाथ रखा तो उन्होंने मेरा हाथ चूम लिया, होंठों पे मुस्कान पर आँख भरी थी मानो और छेड़ा तो सैलाब !
मैं भी मुस्कुरा दिया।
खाने के बाद हमने साथ साथ सफ़ाई की और सोने के कमरे में चले गये।
तब तक करीब दस बज रहे होंगे, उन्होंने पूछा- बीयर पीते हो?
मैंने कहा- हाँ ! कभी कभार दोस्तों के साथ !
तो उन्होंने कहा- दो बोतल ले आओ तो ठीक रहेगा क्योंकि मर्द बीयर पीने के बाद घोड़े की तरह देर तक चुदाई कर सकता है।
मैं गया और जाकर तीन बोतल ले आया क्योंकि रात में देर तक कार्यक्रम चलना था काफ़ी बार शायद।
उन्होंने कमरे का माहौल बड़ा ही सुहावना बना दिया था, मन्द मन्द सी रोशनी, चारों ओर खुशबू फ़ैली हुई और उस रोशनी में उनका सारे बदन का रेखाचित्र सा खिंचा दिख रहा था, माहौल देख कर मैं बेकाबू होने लगा तो उन्होंने रोक दिया, कहा- अब हम एक दूसरे को आप-आप नहीं कहेंगे, तुम और अन्य शब्दों से सम्बोधित करेंगे।
मैंने हामी भरी और उन्हें (उसे) बिस्तर पर लिटा कर उसके होंठों पर अपने होंठ रख दिये, एक हाथ उसके कमर को सहला रहा था और दूसरा उसके सर को पीछे से सहारा दिये हुए था। सहलाते हुए मैंने उसकी चूत को कपरों के ऊपर से छुआ, वाह ! फ़ूली हुई, गर्म, थोड़ी नम, शायद पानी छोड़ना शुरू हो गया था।
मैं चूत की दरार में उंगली से सहला रहा था, तो उसने कहा- चलो एक खेल खेलें ! ताश के पत्तों से जिसे तीन पत्ती या फ़लैश भी कह्ते हैं, साथ में बीयर होगी, एक एक बाजी हारने वाले को अपने बदन से एक एक कपड़ा उतारना पड़ेगा और एक एक ग्लास बीयर भी पीनी पड़ेगी।
मैं तैयार हो गया और खेल शुरू ! पास में दोनों के लिये बीयर के ग्लास भी थे, चखने के तौर पर साथ में कुछ फ़ल थे ही।
खेल शुरू हुआ, पहली बाजी उसने ही जीती, उसके चेहरे पर हँसी आ गई और मैंने अपना कमीज उतार दिया, एक ग्लास गटक गया और एक सेब को काट खाया।
उसने झट कहा- अब उस सेब को मेरे मुँह में अपने मुँह से ही खिलाओ !
मैंने वैसे ही किया और उसने मेरे होंठ काट लिये।
दूसरी बाजी चली और फ़िर मैं हार गया, मैंने अपनी पैंट खोल दी, एक और ग्लास पी गया, मैं जितना उसे नंगा देखना चाहता था, किस्मत उतना ही तड़पा रही थी।
तीसरी बाजी चली और इस बार किस्मत मेहरबान हुई, मैं जीता, तो उसने पहले तो अपना ग्लास उठाया और चुस्की लेते हुए पीने लगी और बिना पलक झपकाये मुझे देखने लगी।
मैं सोच रहा था कि क्या उतारेगी, चेहरे पे हल्की मुस्कान लिये उसने आधा ग्लास ही खत्म किया और अपना कुर्ते को ऊपर उठा कर खोल दिया।
क्या नजारा था !
बिल्कुल गोरे बदन पर बड़ी-बड़ी चूचियों को एक काले रंग की ब्रा संभाले हुए थी, किसी अप्सरा को भी मात दे देने वाला बदन !
गले में उसके चेन थी जो दोनों चूचियों के बीच में पड़ी हुई थी। कमर थी कि लग रहा था कि बरसों की मेहनत से तराशी हुई हो।
मैंने हाथ बढाया और उसकी चूचियों को हल्के से दबाया। सच कहता हूँ, लग रहा था जैसे रुई पर हाथ फ़ेर रहा हूँ।
उसने भी मेरे लण्ड को धीरे से दबाया और कहा- अभी काफ़ी कपड़े बाकी हैं !
मैंने ग्लास की ओर इशारा किया, वो बाकी पी गई, मेरे होठों के सामने आई और मैंने जैसे ही मुँह खोला, अपने मुँह से मेरे मुँह में बियर डाल दी।
मैं हँसा।
अगली बाजी डाली, मैं जीता, उसने अपनी स्लैक्स उतार दी।
अब तो मुझे संयम बरतना मुश्किल लग रहा था, लण्ड था कि अन्डरवीयर फ़ाड़ कर बाहर निकलने को बेताब था।
मैंने उसे दबाया तो थोड़ी राहत महसूस हुई।
नज़र तो उसके बदन पर ही थी, क्या जाँघें थी ! उफ़्फ़ ! कयामत ! गोरी-गोरी, चिकनी, चमकीली और उस पर काले रंग की पैन्टी, चूत की दरार साफ़ दिख रही थी।
मैंने वहाँ छुआ तो हल्का गीला गीला सा मह्सूस हुआ। मैंने अपनी उँगली को सूंघा, और उसकी ओर देखते हुए मैंने उँगली मुँह में रख ली।
उंगली को जीभ से चाटने लगा, उसने एक ग्लास भरा और इस बार एक ही दफ़ा पूरा का पूरा ग्लास पी गई।
अगली बाजी हुई तो फ़िर वो हार गई, उसने कहा- मेरे सारे कपड़े उतर रहे हैं पर तुम्हारे नहीं !
मैंने कहा- गाड़ी में तुमने मेरे लण्ड से तो खेल लिया तो अब किस्मत मुझे मौका दे रही है !
उसने अपनी ब्रा उतार दी।
मुझसे नहीं रहा गया, मैंने कहा- भाड़ में गया यह खेल ! अब असली पर आ जाता हूँ।
उसने कहा- मेरा भी यही ख्याल है, पर बीयर तो पी जाओ !
मैंने बोतल मुँह से लगाई और पूरी बोतल पी गया और उसके ऊपर टूट पड़ा।
बिस्तर पर लेटे लेटे हम गुत्थम-गुत्था हो गये और एक दूसरे को कसकर पकड़ कर होंठों से होंठ मिला कर एक दूसरे के होंठों का स्वाद लेने लगे।
न जाने हम दोनों कब के प्यासे थे कि बस एक दूसरे के होंठों को चूसे जा रहे थे। वो मेरे दोनों होंठों को चूस रही थी, जीभ से जीभ लड़ा रही थी, मैं उसकी चूचियों को दबा रहा था, होंठों से उतर कर मैं उसकी गर्दन को चूमने लगा और गले पर जीभ फ़िराने लगा।
उसकी पसीने और सेंट की मिली-जुली खुशबू मुझे पागल कर रही थी।
मैं उसके कानों को दाँत से दबाने लगा, वो मस्ती में सराबोर थी, उसने पैर फ़ैला लिये थे, मैं उसके दोनों टांगों के बीच में उसके ऊपर लेट कर उसकी चूचियों को दबा रहा था और उसे चूम रहा था। मैं उसकी चूत के ऊपर अपने लण्ड को अन्डरवियर से रगड़ रहा था, वो मस्ती की सिसकारियाँ ले रही थी।
हम दोनों की आँख़ें बंद हो रही थे, मेरा भी लण्ड लोहे की रॉड बन गया था, उसने ख़ुद ही अपने हाथों से मेरे अण्डवीयर को उतार दिया और लण्ड को अपने उंगलियों से सहलाने लगी। लण्ड के ऊपर के गुलाबी भाग को सहलाने से मेरी भी हालत एक भूख़े शेर की सी हो गई, मैं बस उसे चोद देना चाह रहा था।
मैंने अपने ख़ड़े लण्ड को उसकी चूत पर जैसे ही भिड़ाया उसने मुझे रोक दिया, कहा- पहले लण्ड का स्वाद तो चख़ लूँ।
मेरा भी मन उसकी चूत को चाटने का हुआ, मैं पीठ के बल लेट गया, मेरा लण्ड तो पहले से ही तैयार था, वो मेरे लण्ड को निहार रही थी।
मैंने पूछा- क्या हुआ?
तो कहने लगी- मन कर रहा है कि ख़ा जाऊँ ! पर इसके और भी काम हैं !
कह वह लण्ड पर जीभ फ़िराने लगी, क्या आनन्द आ रहा था। वो मेरे लण्ड को मुँह मे लेकर लॉलीपाप की तरह चूसने लगी, उसके मुँह का गर्म गर्म एहसास, उसके हाथों से लण्ड को सहलाना, मेरे लण्ड को मुँह से चोदना, बड़ा मजा आ रहा था।
मैं भी उसके सर को पकड़कर उसके मुँह में लण्ड पेले जा रहा था, वो भी मेरे लण्ड पर से अपने होंठों का दबाव कम नहीं कर रही थी।
मैं उसके मुँह मे ही झड़ जाना चाहता था पर उसने बीच में ही रोक दिया, मैं समझ गया कि मेरी बारी है।
मैं उसे बिस्तर के किनारे ले गया, दोनों टांगों को बिस्तर से नीचे झुला दिया, फ़र्श पर बैठकर मैंने उसकी चूत पर उंगली फ़िराना शुरु किया और दूसरे हाथ से उसकी चूचियों को सहलाने लगा। मैं अपने होंठों से उसके चूत की पंख़ुड़ियों को सहलाने लगा, तो उसने सिसकारियाँ लेनी शुरु कर दी।
मैं भी जीभ से उसके चूत को चाटने लगा, एक उंगली से उसके छेद के ऊपर के भाग(क्लिट) को सहलाने लगा और जीभ को छेद में घुसाकर चोदने लगा, वो भी अपनी गाण्ड उचकाकर साथ देने लगी। मैं जीभ से ही चोदे जा रहा था, वो जोर जोर से सिसकारियाँ ले रही थी।
उसकी चूत बेहद गीली हो गई थी, उसकी चूत की ख़ुशबू मुझे मदहोश कर रही थी, मैं भी बड़े मन से उसके चूत को जीभ से चोदे जा रहा था। उसने अपनी टांगों से मेरा सर दबा दिया, मैं उसकी भग्नासा को हिलाये जा रहा था और जीभ से चाटे जा रहा था, वो बड़े जोर से स्ख़लित हुई।
मैं उठ ख़ड़ा हुआ कि अब कुछ देर तो वो कुछ नहीं करेगी, पर वो झट घुटनों के बल आकर मेरे लण्ड़ पर टूट पड़ी, मुँह मे लेकर जोर जोर से चूसने लगी जैसे मैं कहीं भागा जा रहा था।
उसका मुँह लगाना था कि मेरा लण्ड फ़िर रॉड बन गया, उसने मुझे बिस्तर पर लेटने का इशारा किया, मैं लेट गया और वो मेरे ऊपर आ गई और लण्ड को अपने चूत पर रगड़ने लगी और धीरे धीरे लण्ड पर बैठ कर उसे अपने चूत में घुसाने लगी, उसे दर्द हो रहा था, मैं भी कसाव महसूस कर रहा था। गर्मागर्म चूत का कसाव, पूरा लण्ड उसकी चूत में समा गया और वो मेरे होंठों को चूसने के लिये मेरे ऊपर लेट गई और धीरे धीरे गाण्ड उचका-उचका कर चुदवा रही थी।
मैं भी उसकी कमर को पकड़ कर नीचे से लण्ड को उसकी चूत में चोद रहा था।
क्या अनुभव था ! अदभुत ! ऐसे धीरे धीरे चोदने में मजा आ रहा था, पूरा लण्ड उसकी चूत के रस से सराबोर था, मेरी जांघों से उसकी गाण्ड के टकराने की आवाजों से सारा कमरा गूँज रहा था, वो धीरे धीरे तेज होने लगी, मैं भी तेज होने लगा, वो कराहने लगी तो मैं पागल हो उठा।
उसने मेरे होंठों को चूसना बंद कर दिया और सीधे हो कर चुदाई का आनन्द लेने लगी, उसकी आँख़ें बंद थी, अपने बालों को पकड़ कर वो उछ्ल रही थी, उसे चुदवाता देख़ मैं भी अपने चरम की ओर बढ़ने लगा। लगा कि मेरा लण्ड फ़ूट पड़ेगा, मैं भी नीचे से उसे कस-कस कर धक्के लगा रहा था, वो ऊऊऊउह्ह्ह्ह आ…आ……आ……ह की आवाजों स्ख़लित हुई और मेरा भी तापमान बढ़ाने लगी।
मैंने कहा- मैं खत्म होने वाला हूँ तो वो झट उतर गई और मेरे लण्ड को अपने होंठों में ले लिया।
मैं घुटनों पर आ गया और वो पेट के बल लेट कर लण्ड को चूसने लगी।
मैंने कई फ़व्वारे उसके मुँह में छोड़े और उसने सारा का सारा पी लिया, वीर्य पीने के बाद उसने बड़े प्यार से मेरे लण्ड को चाट कर साफ़ किया और मैंने एक जबरदस्त चुम्बन उसके होंठों को किया।
हम उसी हालत में रात को सो गये, सवेरे साथ नहाये, उसकी गाड़ी में हाई-वे पर चुदाई की और बाद में मैंने बिन शादी के हनीमून भी मनाया, हम कई जगह साथ घूमने गये।
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