ये कहानी क्या क्या गुल खिलती है

ओदेपुस कॉंप्लेक्स कब कहाँ केसे और किस पर वार कर दे कोई नहीं जानता इस कहानी में भी शायद ऐसा ही कुछ हो जाए, पता नहीं देखते हैं ये कहानी क्या क्या गुल खिलती है. पर ये ओदेपुस कॉंप्लेक्स होता क्यूँ है? यह इन्सेस्ट होता क्यूँ है? बहुत सारे ऐसे सवाल ह्यूम हर रोज़ जकड़ते है? यह कहानी एक प्रयास है इन सवालों का उत्तर जानने के लाइ. ये प्रयास सफल हो पाएगा या नहीं इस का उत्तर तो केवल आप ही दे पायेंगे यह कहानी पड़ने के बाद.*
इन्सेस्ट क्या है? ये क्यूँ उत्पन होता है? ऐसे कई सवालों का उत्तर शायद ये कहानी दे पाए या फिर कई और सवाल खड़े कर दे. देखते हैं ये कहानी और सवाल खड़े करती है या कुछ सवालों का उत्तर देती है.
new sexy story....
उमीद करता हूँ की यह कहानी पाठकों का भरपूर मनोरंजन करेगी. और आप के साथ के बिना इस कहानी को लिखने में मज़ा नही आएगा. इसलिए साथ देते रहिएगा और मज़े लेते रहिएगा.
कुछ टाइपिंग ग़लतियाँ ज़रूर नज़र आएँगी, उन्हें कृपया नज़रअंदाज़ कर दीजिएगा.

वाडी रूम की घाटियों में राजेश रेत के रंगों को बदलते हुए देख रहा था उसके साथ 9 और लोग भी थे जो हिन्दुस्तान के अलग अलग शहरों से आइए हुए थे. इन सब को जॉर्डन टूरिसम ने अपना देश दिखाने के लिए निमंत्रण दिया था. ग्रूप में पाँच मर्द और पाँच ही महिलाएँ थी.
सब की आँखे जैसे रेत पर गाड़ी हुईं थी. जैसे जैसे सूरज ढल रहा था रेत उपना रंग बदलती जा रही थी. जब सूरज ढल गया तो इन लोगों को एक शिविर में ले जया गया जहाँ इनके डिन्नर का प्रबंध था. एक बहुत ही अच्छा शिविर था जहाँ बीच में आग का पुलाव जल रहा था और उस पर एक बकरा पकाया जा रहा था. वहाँ और भी टूरिस्ट आए हुए थे. एक तरफ बेली डॅन्सिंग का प्रोग्राम चल रहा था सभी वहाँ पर जमा हो गये. अपनी कमर लचकते हुए नर्तकी सभी के दिलों पर जैसे राज करने लगी थी. चारों तरफ़ एक सन्नाटा सा छा गया था केवल नर्तकी के घुँगरू और साजिन्दो के ताल के आवाज़ आ रही थी..2 घंटे तक नर्तकी अपनी कला का प्रदर्शन करती रही और सबका दिल लुभाती रही.
जब नाच ख़तम हुआ तब भी एक सन्नाटा सा था सब लोग नर्तकी में ही खोए हुए थे जैसे उसके पैर फिर थिरकने लगेंगे. 
मरहवा! मरहवा! राजेश के मुह्न से निकल पड़ा और तालियों की गूँज जैसे पूरे रेगिस्तान में फैल गयी.
वन्स मोर वन्स मोर की आवाज़ें गूंजने लगी.
आयोजक नें सभी को दिलासा दिया की डिन्नर के बाद फिर शो किया जाएगा.
सभी डिन्नर के लिए जाने लगे और एक सोफे पर बैठ गये. ग्रूप में उसकी सब से ज़्यादा दोस्ती राजीव से थी जो उसके लिए काउंटर से स्क्रू ड्राइवर का एक लार्ज ले आया, दोनों बैठ कर अपने अपने जाम टकरा कर माहोल का मज़ा लेने लगे. डिन्नर की इनको कोई जल्दी नहीं थी, क्योंकि ये सबसे बाद में डिन्नर करना चाहते थे , वजह थी टाइम डिफरेन्स, चाहे यहाँ रात के 8 बज रहे थे पर हिन्दुस्तान में तो अभी शाम के 6 के लगबग ही थे. टूरिस्ट लोग खाना खाने लगे थे और इनका ग्रूप एक जगह इकठ्ठा हो और आपस में हसी मज़ाक कर रहा था.
जाम से जाम टकराए जा रहे थे. लड़कियाँ ( 5 में से 2 शादी शुदा थी) भी जिन और मार्टिनी का लुत्फ़ उठा रहीं थी.
जैसे जैसे रात बदती गयी सब पर हल्का हल्का सरूर चड़ता गया, राजेश कुछ ज़्यादा ही पी चुका था, पर उसे देख कर ऐसा नहीं लग रहा था की उसने ज़्यादा पी है, राजीव उसको हमेशा मज़ाक में टॅंकर बुलाया करता था. दिल्ली से ये दो ही थे.
10 बजे के करीब सब नें खाना खा लिया. बड़ा ही लज़ीज़ खाना था. होता भी क्यों नहीं, सबके सब सरकारी मेहमान जो थे. राजेश खाने के साथ साथ भी पीता जा रहा था. राजीव नें उसे बार बार टोकने की कोशिश की पर उसने कुछ नहीं सुना. 
"यार ग्रूप में लड़कियाँ भी हैं कुछ तो ध्यान रख क्या सोचेंगी तेरे बारे में" राजीव नें उसे अकेले में ले जा कर कहा.
"भाड़ में जाए सब, उसे देख वो जो वहाँ बैठी है" राजेश राजीव को एक फिरंगी ग्रूप में बैठी हुई लड़की की तरफ इशारा करता है. वाक्य में चाँद की रोशनी में उसका रूप खिला हुआ एक फूल लग रहा था.
राजीव की नज़रें वहीं जम जाती हें. एक हाथ में थाली और एक हाथ में जाम ले कर राजीव पत्थर की तरहा बुत बन जाता है और उसी लड़की के जादू में खो जाता है.

राजेश उसका हाल देख कर हँसने लगता है और उसे वैसे ही छोड़ कर अपना एक और जाम लेने काउंटर की तरफ चला जाता है. वह जान भुझ कर उस ग्रूप के पास से गुज़रता हे और उनकी कुछ बाते उसके कानों में पड़ जाती है. ग्रूप जर्मनी से था और राजेश को जर्मन अच्छी तरह आती थी.
राजेश अपना जाम ले कर राजीव की तरफ बॅडता है. फिर उसी जर्मन ग्रूप के पास होते हुए. जैसे ही वो वहाँ से गुज़रता है तो एक हिन्दी गाना जर्मन में गुनगुनाते हुए निकलता है,
 आवाज़ इतनी थी की वहाँ बैठे जर्मन ग्रूप को सुनाई दे जाए. "अकेले अकेले कहाँ जा रहे हो" = "अलें अलें वोहीं गेस्त दू!!" बिना उनकी तरफ नज़र डाले वह राजीव के पास पहुँच
कर एक ढोल उसकी पीठ पर जमाता है. “साले क्या चूतिए की तरह बुत बना हुआ है, सब तुझको ही देख रहे हें, बैठ के
चुप चाप पहले खाना ख्तम कर “ 

राजीव चोंक उठता है और शरमाता हुआ एक सोफे पर बैठ जाता है, उसकी नज़र अभी भी उसी लड़की पर टिकी हुई थी जो अब राजेश को देख रही थी. 
ये जर्मन ग्रूप पिछले 7 दीनो से जॉर्डन में घूम रहा था और आज पहली बार किसी के मुँह से अपनी भाषा सुनी थी. जहाँ वह लड़की एक कयामत थी तो वहाँ राजेश भी कुछ कम नहीं था.
 6’2” की हाइट, सुडोल कसरती बदन , हल्की हल्की दिल को लुभाने वाली मूँछे, स्टाइलिश ब्रॅंडेड कपड़े, कुल मिला कर अपने आप में एक डेलक्स पॅकेज था जो किसी भी लड़की को
अपनी तरफ खींच सकता था. 

वह लड़की अब वहाँ से उठती है और राजेश की तरफ आने लगती है. राजेश ये नोट कर लेता है और राजीव को खाली गिलास दिखा कर वहाँ से उठता है और बार
काउंटर की तरफ बॅड जाता है. 

वह लड़की भी उसी तरफ बॅड जाती है और राजीव के दिल पर छुरियाँ चल जाती है, वह खाना वाना भूल जाता है और उस लड़की को ही ताड़ता रहता है. राजेश से यह छुपा नहीं था. वह वापस आने
की जगह वहीं काउंटर पेर बैठ जाता है. वह लड़की भी वहीं पहुँच जाती है और बार मेन को एक मार्टिनी का ऑर्डर देती है, उसकी नज़रें राजेश पर ही थी. 
लड़की : राजेश को मुखातिब होते हुए “ एंतशुल्दीगुँग” ( एक्सक्यूस मी) वह जर्मन में ही बोलती है यह जानने के लिए की राजेश को जर्मन आती है या नहीं. 

राजेश : उसकी तरफ देखते हुए “ या बीते” ( एस प्लीज़) 

और उन दोनो का वार्तालाप जर्मन में शुरू हो जाता है. राजीव भी वहाँ पहुँच जाता है और अपनी ड्रिंक का ऑर्डर देता है. वह उनकी बातें सुनने की कोशिश करता है उसके पल्ले कुछ नहीं पड़ता.
 मन ही मन राजेश को पता नहीं कितनी गलियाँ दे रहा था.वह भी वहीं बैठ जाता है और उन दोनों को घूरता रहता है. 

राजेश उसकी हालत पर तरस ख़ाता है और उस लड़की से उसका इंट्रो करता है. 
केथ, ( केथरीन उसका पूरा नाम) यह मेरा दोस्त राजीव है और राजीव यह केथ है जो यहाँ अपने परिवार के साथ घूमने आइए है.राजेश सब इंग्लीश में बोलता है ताकि दोनो को समज आए.
 केथ अपना हाथ राजीव की तरफ बड़ाती है, दोनो शेक हॅंड करते हैं स्माइल करते हुए. राजीव तो जैसे उसकी आँखों में खो गया था और शिष्टाचार भूल कर उसके कोमल हाथ को अपने हाथ
में पकड़े ही रहता है. केथ को यह अजीब लगता है वो राजेश की तरफ देखती है, राजेश राजीव को कोहनी मारता है और धरातल पर ले आता है. राजीव शर्मिंदा सा हो कर केथ का हाथ छोड़ देता है

और माफी माँगता है कहते हुए की केथ इतनी सुंदर है के वो सब कुछ भूल गया था. केथ को अपनी तारीफ तो अच्छी लगती है पर राजीव का यह कहना उसे कुछ अच्छा नहीं लगता. इतने में केथ
 का परिवार भी वहीं पहुँच जाता है. 
केथ सबका इंट्रो राजेश से करती है , वह जर्मन में ही बोलती है और राजीव को ओवरलुक कर देती है. 

राजेश उसके पिता प्रोफ गेरहार्ड से जर्मन में बाते करने लग जाता है. राजीव यह देख कर और भी जलभुन जाता है और वहाँ से चल देता है. एक पल के लिए राजेश उसे रोकने के लिए कुछ बोलने ही
वाला था की केथ उसे इशारे से मना कर देती है. 
प्रोफ गेरहार्ड एक डॉक्टर थे और राजेश के पिता भी एक डॉक्टर थे, वह अपने पिता के बारे में और स्किन में उनकी रिसर्च के बारे में बताने लगता है. प्रोफ गेरहार्ड की इच्छा राजेश के पिता के बारे में और
जानने की बॅड जाती है. दोनो का प्रोफेशन और फील्ड एक ही था. 
राजेश की नज़र घड़ी पर पड़ती है, रात का एक बजने वाला था. वह उनसे थोड़ी देर के लिए माफी माँगता है और अपने ग्रूप की तरफ बॅड जाता है जहाँ राजीव जलाभुना बैठा हुआ था. राजेश सबको कहता हे
की वह कुछ बिज़ी है और बाकी लोग चाहें तो यहाँ की सुंदरता को एंजाय करें और अगर नींद आ रही है तो अपने अपने कमरे की तरफ जायें, सब राजेश का इसीलिए वेट कर रहे थे, सब अपने अपने कमरे की तरफ
 चले जाते हें पर राजीव वहीं बैठा रहता है. 

क्योंकि इस ग्रूप का इस कहानी से कुछ लेना देना नहीं है इसलिए में उनकी तरफ कोई तवजो नहीं दे रहा हूँ. 

तो चलिए राजेश की तरफ चलते हैं. 

राजेश राजीव को वहीं छोड़ कर जर्मन फॅमिली के पास चला जाता है और सबके लिए काउंटर पर एक और ड्रिंक का ऑर्डर दे देता है. ड्रिंक करते हुए प्रोफ गेरहार्ड राजेश के पिता के बारे में और पूछने लगते हैं. केथ
की माँ भी एक डॉक्टर थी तो उसे भी हो रही बातों में दिलचस्पी होती है. ड्रिंक ख़तम करते करते ईक घंटा और बीत जाता है . तब केथ की माँ सबको चलने का इशारा करती है और राजेश को सुबह ब्रेकफास्ट पे
 इन्वाइट करती है. केथ राजेश को कुछ इशारा करती है. राजेश वहीं रुक जाता है और अपने लिए एक और ड्रिंक का ऑर्डर कर देता है. 
बर्मन कहता है सर अब लास्ट ऑर्डर दे दीजिए क्यूँ की बहुत देर हो चुकी है वैसे तो हम 11 बजे तक काउंटर बंद कर देते हैं. राजेश पूरी एक वोड्का की बॉटल का ऑर्डर साथ में दे देता है. राजीव वहाँ सबको जाते हुए
 देख कर राजेश की तरफ आता है. 

राजीव : साले अकेले अकेले माल हजम करने की फिराक में है, मैं क्या चूतिया लगता हूँ तुझे जो मुझे अवाय्ड कर रहा है. 

राजेश : भूतनी के, वो तेरे में इंटेरेस्ट ही नहीं ले रही तो मैं क्या करूँ. 

राजीव : "बेह्न्चोद इंग्लीश में बाते नहीं कर सकता, साला पता नहीं कौन सी ज़ुबान बोल रहा था". 

राजेश : "यार यह जर्मन ग्रूप है और जर्मन में ही बात करना चाहता था. चल बहुत देर हो गयी है सोने चलते हैं. तू चल में यहाँ का सेट्ल कर के पहुँचता हूँ. फिर रूम में बैठ कर बाते करेंगे." 

राजीव : थोड़ा नाराज़ सा दिखते हुए, “नहीं में सोने जा रहा हूँ" और वहाँ से चल देता है. 
इधर राजीव वहाँ से रुखसत होता है उधर केथ वहाँ पहुँच जाती है, उसने एक पारदर्शी लिंगेरी पहनी हुई थी जिसमे से उसके सुडोल चूचे सॉफ नज़र आ रहे थे . पतली कमर और उस पर 36सी के पहाड़ अपनी
 नोके ताने हुए खड़े थे .राजेश उसका यह रूप देख कर हैरान हो जाता है उसकी नज़रें केथ की चूचियों पर गड़ जाती हें वह साँस तक लेना भूल जाता है. पर एक और चीज़ साँस लेने लगती है .
उसकी पेंट में एक तंबू बन जाता है. केथ की नज़र वहीं थी और वो हल्की हल्की स्माइल करने लगती है. उसे मालूम था राजेश पर उसके इस रूप का क्या असर पड़ेगा. 
जहाँ एक तरफ वो राजेश से आकर्षित थी वहीं वह उसे भी अपनी तरफ आकर्षित करना चाहती थी. सॉफ दिख रहा था के उसका जादू राजेश के सर चॅड कर बोल रहा था. 
वह राजेश की तरफ बॅडती है और खुले में ही उसके लबों पर अपने लब रख देती है. राजेश नींद से जैसे जाग उठता है उसकी साँसे भारी होने लगती हैं. वह केथ को अपनी बाहों में ज्क्ड लेता है
 और दोनो खुले आसमान के नीचे अपने लबों को एक दूसरे से भिड़ाने लगते हैं. 

बार मेन सब देख रहा था उसके लिए ये कोई नई बात नहीं थी, वह इन दृश्यों का आदि हो चुका था. उसे बहुत देर हो रही थी, तो वह अपना गला खंखार कर उनका धयान अपनी तरफ करता है. 

राजेश उसकी तरफ देखता है और एक स्माइल कर, काउंटर से दो गिलास, वोड्का की बॉटल , कुछ सोडा की बोतलें और स्नेक्स ले कर बिल पर साइन कर देता है. 

राजेश शिविर से बाहर निकल जाता है और उसके पीछे की तरफ चल देता है. केथ भी उसके पीछे पीछे चलने लगती है. वह हैरान थी की राजेश रूम में जाने की जगह बाहर क्यों जा रहा हे. खैर क्या फरक पड़ता है
इसमें शायद कुछ और ही रोमांच हो, सोचते हुए वह अपनी रफ़्तार बड़ा कर राजेश के समीप पहुँच जाती है. 
राजेश रेत पे उभरी हुई एक सपाट चट्टान पे बैठ जाता है और केथ उसके पास आ कर बैठ जाती है. 
राजेश पेग त्यार करने लगता है तो केथ उसे रोक कर खुद दो पेग त्यार करती है. दोनो अपना अपना जाम उठा कर चियर्स करते हैं और एक एक छोटा घूँट भर लेते हैं. 

दोनो एक दूसरे की तरफ ही देख रहे थे आग दोनो तरफ बराबर लग चुकी थी, लगता था जैसे रेगिस्तान में एक भूचाल कुछ ही दूरी पर रुका हुआ है और जैसे ही शुरू होगा सब कुछ उड़ा के ले जाएगा. 

राजेश की नज़रें केथ के मदमाते बदन का अवलोकन कर रही थी तो केथ की नज़रें राजेश का, दोनों धीरे धीरे अपना पेग ख़तम करते हैं और केथ दूसरा त्यार कर देती है, ऐसा लग रहा था जैसे वोड्का नहीं पानी पे रहे हों.
 एक दूसरे का नशा ही दोनो पर कुछ ऐसा चॅड रहा था की वोड्का उसके सामने फीकी पड़ती जा रही थी. राजेश के एक हाथ में अपना गिलास था दूसरे हाथ की उंगलियों को वो केथ की मरमरी बाँह पे थिरकाने लगता है,
केथ की आँखे लाल सुर्ख होने लगती हैं उसकी साँसे भारी होने लगती हैं, एक अजीब सा उन्माद उसकी शरीर पर चड़ने लगता है जिसका असर उसकी गीली होती हुई पेंटी ब्यान करने लगती है.


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